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________________ ९० तेने जोईने वैराग्य थवोज जोईए. ११. बुढापण मूढ माणसोने ए बतावे छे के, माखीओनी पांखथी पण पातळा मांसने ढांकनार चामडीमां (शरीर उपरनी पातळी छालमां) सुंदरता मानवी एक प्रकारनी भ्रान्ति के भ्रम छे. १२. हे मूर्खो ! खेद छे के, आ आयुष्य अने शरीर क्षण क्षणमां नाश पामनार छे. परंतु अमे ए वातने जाणता नथी. फक्त समयनेज क्षयात्मक अर्थात नाश पामनार जाणीए छीए. १३. हाय ! बीजुं तो शुं, बुढापो आववाथी लोक पोतानी माताने पण तरणा बराबर गणता नथी, अर्थात् तरणाथी पण तुच्छ समजे छे. तथा बुढापाथी तो मरकुंज सारुं छे. १४. पंडितोमां आ रीते विचार अने मूर्खोमां हांसी उप्तन्न करावतो ते बुढ्ढो केटलीक वारे सुरमंजरीने घेर पहोंच्यो. १५. ज्यारे त्यां घरनी द्वारपालिनी स्त्रीओए तेने आववानुं कारण पुछ्युं, त्यारे बुढाए कह्युं के "हुं मारा कल्याणने माटे कुमारी तीर्थमां स्नान करवा आव्यो छु. ( अहीं कुमारी एक तीर्थनुं नाम छे, अने कुमारी सुरमंजरीनी तरफ बनावट छे). ठीकज छे के सज्जनोनां वचन मिथ्या थतां नथी; अर्थात् ते ते माटेज आव्या हता. १६. द्वाररक्षक स्त्रीओ तेनी आ अजायब जेवी वात सांभळीने हसी पडी. कारण के मूर्खोने सज्जननां वाक्य कौतकज लागे छे. १७. पछी तेमणे कृपा करीने तेने रोक्यो नहि, तेथी बुढो सुरमंजरीना घरमा चाल्यो गयो, जे लोकोने कोई प्रकारनी ग्लानि रही नथी, ते बळेला बीजनी माफक निर्लज क्यां जीवे छे ? ते तो मरेलाज छे. भाव ए छे
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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