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जिन भगवानना समीप होवाथी सिद्धिओ अवश्य थाय छे. ४१. एटलामां सुदर्शन यक्ष पण प्रसन्नताथी त्यां आव्या, कारण के सज्जन पुरुष फणस कठहर वृक्षोनी माफक फळज आपे छे. ४२. त्यारे ते यक्षे गोविन्दराज साथे बहु गौरवथी कौरव महाराज अर्थात् जीवंधर कुमारनो विधिपूर्वक राज्याभिषेक कर्यो. ४३. पछी यक्षेन्द्र राजेन्द्रने पुछीने पोताने स्थाने चाल्यो गयो, कारण के सूर्य कमळने खीलावे छे, परंतु तेथी आसक्तिनी अपेक्षा राखतो नथी; अर्थात् खीलाव्या पछी तेथी कई संबंध राखतो नथी पण अस्ताचल तरफ चाल्यो जाय छे. ४४. पछी बधा लोकने प्रसन्न करनार ते राजसिंह अर्थात् महाराजा जीवंधर जिनमंदिरथी पोताना महेलमां आव्या अने त्यां तेमणे पोताना वंश परंपरागत सिंहासनने अलंकृत कर्यु. ४५.
बधा लोक बहु नवाइ पामीने तेमना वृतान्तने विचारवा लाग्या, कारण के जे संपत्ति के विपत्ति समजमां आवी शकती नथी-अचानक आवी जाय छे, ते विशेष करीने आश्चर्यकारक होय छे. ४६. " अहो ! कर्मोनी विचित्रताने जुओ, के क्यां ते पूज्य राजपुत्रपणुं, क्यां ते स्मशान भूमिमां जन्म लेवो अने क्यां आ फरीथी राज्य, मळवू! ४७. पुण्य अने पाप सिवाय बीजी कोई पण यस्तु मुख दुःखनुं कारण नथी, कारण के ज्यारे पापनो उदय थाय छे, त्यारे . करोळीआने तेनी जाळ पण कुवामां पडवाथी बचाबी शकती नथी. ४८. जेने मारवा चाहता हता, तेणे पोताने