SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६ पण आ रीते शिक्षा अने उपदेश आपवा लाग्यो. कारण के यथार्थ ज्ञान मनुष्याने माटे बन्ने लोकमां सुखकारी छे. १८. एटलामां तेणे नाश पामती नावमां दोरडी बांधवाना एक लाकडा टुकडाने दीठो. सत्य छे के ज्यारे आयुष्य बाकी होय छे, त्यारे प्राणीओना प्राण बची जाय छे. १९. त्यार पछी श्रीदत्त ते लाकडाना टुकड़ा पर चढीने एक द्वीप के देशमां पोंच्यो, अने त्यां पहोंचीने बहु प्रसन्न थयो. जो मनुष्यनुं राज्य जतुं रहे परंतु प्राण बची जाय, तो ते बहु संतुष्ट रहे छे. २०. जोके तेनुं एकटुं करेलुं बधुं धन जतुं रधुं हतुं, पण ते गरायो नहि. अने ए विचारवा लाग्यो के, हवे आगळ शुं करवुं ? जे पुरुषमां तत्वज्ञानरुपी धन होय छे, तेनुं दुःख पण सुखने माटे होय छे. अर्थात् यथार्थ ज्ञानी पुरुष दुःखमां पण सुख अनुभवे छे. २१. " हे मूर्ख आत्मा ! तृष्णानी अग्नि पीडित थइने तुं मोहने वश केम थाय छे ? कारण के बने लोकना हितना नाश करनार पुरुष अने तृष्णाथी पीडीत पुरुषमां कंई भेद नथी. अर्थात् जे पुरुष तृष्णार्थी व्याकुळ अने आशा निमग्न रहे छे, ते बन्ने लोकमां पोताना हितनो के कल्याणनो नाश करनार छे. २२. हे आत्मा ! जो तुं बन्ने लोकमां पोतानी भलाई ईच्छतो होय, तो आशा तृष्णा छोडी दे. आशाथी तारा धर्म अने सुखनो नाश थाय छे. आशा करवी ते फळ पामवानी इच्छाथी वृक्षनो नाश करवा बरोबर छे. धर्म अने सुखने कापनार आशा, फळ
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy