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________________ पकडीने तेने लइ आवो. बहु खेदनी वात छे के, मूल्नो क्रोधरुपी अग्नि अनुचित स्थानमां पण वधे छ अर्थात् ज्यां क्रोध न करवो जोइए, त्यां पण मूर्ख माणस क्रोध करे छे. ७. ते सेनाए कुमारना घरने चारे तरफथी घेरी लीधु, परंतु जो हरणो सिंहनी चारे तरफ तेने घेरीने खडां थइ जाय, तो ते तेने शुं करी शके छ ? ८. ए जोइने कुमार पण क्रोधवश थइने सेनाने मारवानो प्रारंभ करवा लाग्यो. सत्य छे के जो तत्वज्ञानरुपी जळ न होय, तो क्रोधना अग्निने कोण बुझावी शके छ ? ९. त्यारे गंधोत्कटे धीरथी समझावीने तेने कवच पहरीने सेनाने मारवा जता रोक्यो अने जीवंधरने रोका, पडयुं, कारण के हित अथवा कल्याणना इच्छनार पुत्र पिताना वचन- कदी उल्लंघन करता नथी. १०. पछी गंधोत्कटे जीवंधर कुमारने पाछळ बाजुएथी हाथ बांधीने सेनाने सोंपी दीधा. सत्य छे, के पुरुषार्थथा पण पाछला जन्मनां दुष्कर्म निवारण थइ शकतां नथी. ११. तेने एवी दशामां जोइने पण दुष्ट बुद्धि काष्ठांगारे तेने मारी नांखवाने आज्ञा आपी. संत्य छे के, सज्जन मनुष्य तो शान्ति प्रकट करवाने नम्र थइ जाय छे, परंतु तेनी ए नम्रताथी दुष्ट मनुष्य वधारे उद्धत अने अभिमानी थाय छे. १२. ते वखते कुमारे गुरुनी आज्ञानुसार काष्ठांगारने मार्यो नहि ( जो ते इच्छे, तो मारी शके.) कारण के प्राण जतो रहे, परंतु बुद्धिमान पुरूष गुरुना वचन- उल्लंघन करता नथी. १३. स्वामी जाणता
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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