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वैश्योनो आगेवान गन्धोत्कट जो के त्यां पुत्रने शोधतो दीठामां आव्यो हतो, ते राजपुत्रने जोइने तृप्त थयो नहि. शुं लाकडं के हलकी वस्तु शोधनार पुरुषना ह्रदयमां मणि जेवी उत्तम वस्तु जोइने प्रीति के आनन्द थतो नथी ? अवश्य थाय छे. ९६. गंधोत्कट ते पुत्रने खोळामां लइने हर्षथी रोमांचित थइ गयो. अने 'जीव' अर्थात् : जवितो रहे ' ए रीते आशीदि सांभळीने तेणे तेनुं नाम 'जीवक' के 'जीवंधर' राख्युः " जीव'' एवो आ आर्शीवाद राणीए पोताना पुत्रने त्यांथी अंतर्ध्यान थती वखते आप्यो हतो. ९७. त्यार पछी तेणे घेर जइने पोतानी स्त्री साथे क्रोधित थइने कां के, तें वगर मरेला पुत्रने अज्ञानथी मरेलो केम कह्यो ? अने पछी आनंन्दित थईने पुत्रने तेने सोंपी दीधो. ९८. वैश्यनी स्त्री सुनन्दाने पण पुत्रने जोईने आनन्द थयो अने तेने हर्षसहित अंगिकार कर्यो; पुत्र प्राणनी माफक प्रीतिदायक होय छे, अने जे पुत्र मरीने फरी जन्म धारण करे छे तेनुं तो कहेज शुं ? ९९.
ए पुत्रनी माता अर्थात् विजयाराणी पोताना भाईने घेर ( पीयेर ) जवानुं इच्छती नहोती. तेथी ते देवी तेने दंडकारण्यनी वचमां आवेला तपस्विओना आश्रममां लई गई. १००. पछी ते तप करती राणीने संतुष्ट अने प्रसन्न करीने देवी पोते कोई बहानाथी चाली गई. मनोकामना सिद्ध थवाथी