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________________ ७९ बुद्धिमान पोतानी ठगाई अने अपमानने प्रगट करता नथी. १२. त्यारे तेणे खेद साथे दुःखनुं ध्यान करता करतां पोतानुं वृत्तान्त कह्यु;-कारण के पहेलां दुःखनुं ध्यान करवाथी मनुष्यने बहु दुःख थाय छे. १३.-" हे पूज्यपाद ! अमारा पापना उदयथी ज्यारे आप चाल्या गया, त्यारे हुं मुडदा जेवो थई गयो अने में मरवानो संकल्प करी दीधो. १४. पछी विद्याना बळथी बधुं वृत्तान्त जाणनार मारी भोजाई ( आपनी स्त्री ) ना शा समाचार छ ? एवो विचार करतांज मने योग्य समयमां ज्ञान थयु; अर्थात् में विचार्यु के भोजाईथी आपनो पत्तो मेळववो जोईए, कारण के ते अवलोकिनी विद्याथी आपनुं वृत्तान्त जाणती हशे. १५. पछी ए रीते भविष्यमां आपना दर्शन- सुख मळवानी आशाथी हुं मारी भोजाईने घेर गयो अने त्यां विषाद करतो रह्यो. १६. ज्यारे में तेने ए कहेवानो प्रारंभ कर्यो के, ' हे स्वामिनि! (भोजाई), जेना पाते नथी, एवी (विधवा) स्त्रीना सुखनी स्थिति केवी थाय छे ? ' त्यारे मारा हृदयनी वात जाणनार गंधर्वदत्ताओ कयु;-१७. 'हे वत्स ! तुं खेद केम करे छे ? तारा भाई सर्व प्रकारथी उपद्रव रहित छे. ते तो मोटा सुखमां छे. हुंज बहु पापी छु के जे दुःखना समुद्रमां पडी छं. १८. एमनो तो प्रत्येक देश, प्रत्येक गाम अने प्रत्येक घरमां ज्यां जाय छे त्यां आदरसत्कार थाय छे, कारण के शुभ भाग्यनो उदय थाय छे, त्योर
SR No.022747
Book TitleJivandhar Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKshatrachudamani
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1913
Total Pages132
LanguageHnidi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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