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एक दिवस गुरुए प्रसन्न चित्तथी पोतानी पासे बेठेला शिष्यने एकांतमां कडं;-५. " शास्त्र विद्याथी सुशोभित हे महाभाग ! ( उत्तम भाग्यवान पुत्र ! ) आ कोईनुं वृतान्त सांभळ के जे विचार करवाथी मनमां अति दया उप्तन्न करनार छे. ६ विद्याधरोना लोकमां लोकपाल नामनो कोई राजा लोकनुं पालन करतो करतो पोतानो समय व्यतीत करतो हतो.७. एक दिवस ते महाराजाए जोतजोतामांज शीघ्र नाश पामतो मेघ जोयो; तेथी मानो ए प्रतीती थई के, उन्मत्तोनुं ऐश्वर्य क्षण मात्रमा नाश पामे छे. ८. तेने जोईने राजाने वैराग्य उप्तन्न थयो; कारण के मोक्षनी ईच्छा करनार भव्यजीवोने समयना पा थवाथी संसारीक पातोमा उदासीनता थई जाय छे. ( जेमके पक्वस्तुमां फळ पाकीने आपो आपज खरी पडे छे). ९. तेथी आ पृथ्वीपति राजाए राज्यकारभार पोताना पुत्रने सोंपाने गुरुपासे जैनमतनी दीक्षा ग्रहण करी, जेमां शरीरने पण हेय एटले त्यागवा योग्य समज्या छे. १०. ज्यारे आ राजा तप करवा लाग्यो, त्यारे केटलाक दिवसे तेने भस्मिक नामनो महारोग थयो, जेथी खाधेलं पधिलं सर्व क्षणमात्रमा भस्म थइ जतुं हतुं.क्षुधा बराबर लाग्या करती हती अने कदापि उदर तृप्ति थती नहोती. ११. ठीकज छे के थोडीज तपस्याथी दुष्कर्मनुं निवारण थतुं नथी. शुं लील लाकडं जराक चीणगारीथी बळी शके छे ? अर्थात बळतुं नथी. १२.