________________
पछी मोक्षे जशो." २८. ए रीते यक्षेन्द्रे स्वामीनो बहु वखत सुधी आदरसत्कार कर्यो. पछी स्वामीने बीजा देशो जोवानी ईच्छा थई. सत्य छे के जे वात थनार होय छे, तेनो मनमां विचार थाय छे; अर्थात् भावी अटल छे ते सर्व कंई करावे छे. २९. अने विद्वान कुमारनी ईच्छाने जाणीने तेमना हितेच्छु देवे पण तेमने सम्मति आपी, कारण के देवता त्रणे काळनी वात जाणे छे. ३०. ए रीते आगळना मार्गनुं बधुं वृतान्त बतावीने यक्षेन्द्र सुदर्शने तेमने जवानी संमति आपी अने ते पछी रजा लईने स्वामि चाल्या गया, कारणके मित्रता हितने माटेज होय छे. ३१.
त्यार पछी स्वामी नीडर (बीक वगरना) थईने अहिं तहिं एकला विहार करवा लाग्या, कारण के पोताना पराक्रमथी पोतानी रक्षा करनार पुरुषने सिंहनी माफक कंइ पण डर नथी. ३२. एकला होवा छतां पण ते जीतेंद्रिय स्वामीने जरा पण उद्वेग थयो नहि, कारण के सम्पति अने आपत्ति मात्रथी अर्थात् ऐश्वर्य अने दरिद्रता प्राप्त थवाथी मूर्खनाज चित्तमां विकार उत्पन्न थाय छे, बुद्धिमानोना चित्तमां नहि. ३३.
आगळ कोई वनमां दावामिथी घेराएला अने अग्निमां बळता हाथीओने जोईने स्वामीए तेमने बचाववानी ईच्छा करी. ३४. दया धर्मर्नु मूळ छे अने जीवापर कृपा करवाने अथवा अनुकम्पा थवाने दया कहे छे, तेथी धर्मात्मानुं लक्षण ए छे के, जेने कोई आश्रय के सहाय नथी, तेने शरण राखे अथवा तेनी