Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 128
________________ ११९ १२ धर्म भावना. हे आत्मा ! धर्मनु महात्म्य जो ! धर्म कार्य करनार कदी शोक करतो नथी. बधा प्राणी धार्मिक पुरुषमा विश्वास फरे छे अने आश्चर्यनी वात ए छ के, धर्मात्मा लोक बन्ने लोकमां सुखी रहे छे. ७९. हे आत्मा ! ज्यां सुधी तें मोक्षप्राप्ति करी नथी, त्यां सुधी तारी आ हितकारी अने अतिशय निर्मळ जैन धर्ममां मोक्ष आपनारी अत्यन्त स्थिर साचे रहो. ८०. आ रीते बार भावनाओना चिंतवनथी राजाने स्थिर अथवा निश्चळ वैराग्य थई गयो. थवोज जोईए, कारण के सज्जनोनी ए प्रकृतिज छे के, तेमना विचारोमा स्थिरता होय छे. अने पछी आ विषयमां सहायता मळवाथी तो कहेज ? अर्थात् पछी तो बीजी पण स्थिरता आवी जाय छे. ८१. विरक्त थईने महाराजा जीवंधर पोताना राज्यने तथा बीजा पदार्थोने तृण समान पण गण्या नहि. सत्य छ के जो हाथमां अमृत आवा जाय, तो पछी कडवी वस्तुने कोण पीए ? ८२. आखरे जैन शास्त्रोना जाणनार ते जीवंधर स्वामीए त्यांथी चालीने जिनेन्द्र भगवाननी पूजा करी अने एक चारण ऋद्धिना धारण करनार योगीन्द्र पासे धर्म श्रवण कर्यो. ८३. अने तेना श्रवण करवाथी ते अतिशय निर्मळ महाराज धर्म विद्याना जाणनार थया, कारण के रत्नोना संस्कार करवामां जे मणिकार चतुर होय छे, तेने पाणीदार बनाववानो अने चळकाववानो प्रयत्न करवाथी रत्न बहुज उज्वळ थई जाय छे.८४.

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