Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 127
________________ ११ बोधिदुर्लभ भावना. आ कर्मभूमपां जन्म लेवो, मनुष्य पर्याय- पामवं, भव्यता अर्थात् त्रणे रत्नोनो प्रकाश करवानी आवश्यक्ता, स्वंगवंश्यता अर्थात् अवयवोनुं सुंदर सुदृढ होवू अने सारा कुळमां उत्पत्ति, हे आत्मा ! आ बधी वातोनुं मळवू एक एकथी विशेष कठीण छे अने सर्वनुं एकदम मळ तो बहुज कठण छे. तेनी दुर्लभताना विषयमां तो कहेवानुज शुं छे ? ७४. परंतु हे आत्मा ! जो तारी धर्ममां बुद्धि न होय, तो ए बधी वातोनुं एकत्र थवू पण निष्फळ छे. जो अन्नना छोडमां दाणा न होय, तो खेतर वगेरे सामग्रीओना उत्तम होवाथीज शुं ? कई पण नहि. ७५. तेथी हे मूढ ! आ दुर्लभ शरीरने धर्ममां लगाव. जे मनुष्य राखने माटे रत्नने बाळी नाखे छे, तेथी अधिक मूर्ख बीजो कोण हशे ? अभिप्राय ए छे के, धर्म कर्या विना विषयादि सेवनमां शरीरने लगाववु राखने माटे रत्नने बाळवा जेवू छे. ७६. धर्म अने पापथी कुतगे देव थई जाय छे, अने देव कुतरो थई जाय छ, तेथी तुं दुर्लभ धर्मने धारण कर, कारण के धर्मज संसारमा मनोरथोने पूर्ण करनार छे. ७७. हे आत्मा ! तने भव्यता, अन्तरगदृष्टि, जीव मात्र पर दया, अने अंतमां अधःकरण अपूर्वकरण तथा अनिवृत्तिकरणथी परिणामोनी निर्मळता ए बधानी प्राप्ति करीने तुं सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्रनी वृद्धियुक्त था. ७८.

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