Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 129
________________ १९० त्यार पछी राजा पोतानो पूर्व जन्मनो वृतान्त जाणवानी ईच्छाथी ते चारण मुनिने प्रश्न कर्यो. त्यारे तेमणे महाराजना पूर्वजन्मनी आ रीते कथा कही ; - ८५. " हे राजा ! तुं पहे लां धातकीखंडना भूमितिलक नगरमां राजा पचनपेगनो यशोधर नामे पुत्र हतो. ८ ६. हे राजश्रेष्ठ ! कोई वखते तुं राजहंसना बच्चाने तेना माळामांथी खेलवा माटे लई आव्यो अने तेनुं तें निर्दोषताथी पालणपोषण कर्यु. ८७. ए बात तारा धर्मज्ञ पिताए कशेथी सांभळी लीधी, तेथो तेणे ते वखते तने धर्मनो उपदेश आप्यो; अर्थात् समजाव्यो के, आ रीते पक्षीओने बंधनमां राखवा ए सारुं नथी, तेमां दोष लागे छे. कारण के आ बचाने एकतो बंधननुं दुःख थाय छे अने बीजुं तेनां मात्राप तेना वियोगथी अतिशय दुःखी थशे. तेथी आ उपदेश सांभळवाथी तुं अतिशय धर्मात्मा बनी गयो. ८८. ते वखते तने अत्यन्त वैराग्यई गयो. पिता पण रोक्यो, परंतु तें मान्युं नहि अने पोतानी स्त्रीओ सुद्धां तें जिनदीक्षा लई लीधी. तुं दिगम्बर मुनि थई गयो. ८९. हे भव्योत्तम ! पछी घोर तपश्चरण करीने तेना प्रभावथी तुं पोतानी आठे स्त्रीओ साथे देव थयोः अर्थात् तुं देव थयो अने तारी आठे स्त्रीओ देवांगनाओ थई पछी स्वर्ग लोकथी चवीने तुं पोतानी स्त्रीओ सुद्धां अहीं राजा थयो. ९०. पूर्वजन्ममां तें हंसना बच्चाने तेना माबापथी तथा तेना स्थानथी जुदुं कर्यु हतुं अने पोताने घेर लावांने पांजरामां पूर्वं हतुं, तेथी तन जुदुं करवाथी ने वियोग अने तेने बांधवाथी तने बंधन ·

Loading...

Page Navigation
1 ... 127 128 129 130 131 132