Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 131
________________ 'भगवान ! संसार सागरना मध्यमां डूबतां में रत्नत्रयरुपी नौका बहु कठीणाईथी प्राप्त करी छे, तेथी ए नौका मने मोक्षपार पहोंचाडनारी छे. १००. . आ रीते त्रण जगतना गुरु श्रीमहावीर भगवाननी स्तुति कर्या पछी जीवंधर महाराजे आज्ञा लईने जिनदीक्षा माटे गणधर देवने नमस्कार को. १०१. पछी बुद्धिमान राजाए दिगम्बरी दीक्षा लईने ते महावीर भगवान आगळ बहु कठण तप कर्यु, के जेथी ज्ञानावरणीय, दर्शनावराय, वेदनी, मोहनीय, अंतराय वगेरे आठे कर्मोनो अनुक्रमे नाश थई जाय छे.१०२. ___ त्यारपछी जीवंधर महामुनि त्रणे रत्नोनी पूर्तिने माटे अनन्तज्ञान, अनन्तसुखादि गुणोथी पुष्ट थया. १०३. अने अंतमां तेमणे सिद्धपदवी प्राप्त करीने अलौकिक शोभायुक्त केवळज्ञानरुपी अतुल्य,अमुख्य अने अनन्त मोक्षलक्ष्मीनो अनुभव को.१०४. आ रीते जे महान इच्छावाळो पुरुष ते महान सुखने प्राप्त करवानी इच्छा करे छे, के जे पवित्र जैनधर्मद्वारा बधां कोनो नाश थवाथी मळे छे, ते बुद्धिमाने कल्याणनी प्राप्तिने माटे पवित्र जैनधर्मर्नु अवलम्बन कर जोईए के जे जैनधर्म कुमतिरुपी हाथीने मारवामां सिंह समान छे. १०५. . गुणोए करीने बधा क्षत्रीओना चूडामणि (शिरोमणि ), प्रभाव अने युवावस्थाए करीने शूरवीर, अने महान ऐश्वर्यथी कुबेरतुल्य ए राजाओना राजा जविंधर शोभायमान हो!१०६. __ आ प्रमाणे श्रीमान् वादीभीसंहमूरिए रचेल क्षत्रचूडा मणि ग्रन्थमां मुक्तिश्रीलम्भ नामे अगीआरमुं प्रकरण पूर्ण थयु

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