Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 126
________________ बहुज सहज छे. ६५. परिणामनी शुद्धि माटे बाह्य तप कर, जोईए. कारण के अग्नि वगेरेनो नाश थवाथी चोखा पकावी (रांधी) शकाता नथी. ६६. ज्यारे तुं बाह्य पदार्थोमां ईच्छा करीश नहि, त्यारेज परिणाम विशुद्धि थशे अने ईच्छा न करवामांज सुख छे, तेथी तुं बाह्य पदार्थोमां केम वृथा मोहित थाय छ ? ६७. हे आत्मा ! मोक्ष सुखनी वात तो जवा दे, हजु तुं पोतानी इंद्रियोने टुंक वशमां राखीने पोते जातेज पोताना स्वरुपने पोतामांज विचारीने तेना सुखनोज अनुभव कर. ६८. शान्त अंतःकरणवाळा पुरुषने पोताना अनुभवमां आवनारी जे प्रीति उत्पन्न थाय छे, तेज प्रीति आ वातने माटे प्रमाण छे के, आत्माथी उत्पन्न थएल कोई अनन्त सुख पण होय छे. ६९. १०. लोकभावना. आ लोक तण पवनोथी घेराएला, चरण फेलाएला अने कमर पर हाथ राखेला पुरुष समान छे. तेना उध्वं, मध्य अने अधो ए त्रण भाग छे; अर्थात् उर्वलोक, मध्यलोक अने अधोलोक. ७०. हे आत्मा ! आ असंख्यात प्रदेशवाळा लोकमां जे जन्म अने मरणतुं स्थान छे, तेमां एवो एक पण प्रदेश नथी, के ज्यां तुं अनन्तवार जन्म्यो अने मर्यो हशे नहि. ७१. हे आत्मा ! अज्ञान अथवा मिथ्याज्ञानमा होवाथी तुं पहेलां प्रमाणे फरी संसारमा भ्रमण करशे, कारणके कारण- प्रबळ थवाथी कार्यनो नाश थतो नथी. ७२. हे आत्मा ! मूढ माणसोने भोगववा योग्य सुखनो त्याग करीने तप करवामां यत्न कर, कारणके प्रकाश थवाथी चिरस्थायी अंधकार पण नाश पामे छे.७३.

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