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११५ आ शरीरनो नाश थवा छतां पण बुद्धिमान पुरुष शोक करता नथी. जेमके शेरडीनो रस लई लोधा पछी जो शेरडीने बाळी नांखवामां आवे तो कई शोक थतो नथी तेम ५४.
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७ आश्रव भावना.
हे आत्मा ! कर्मरुपी पुद्गल जे मोटा दुःखथी दूर होय छे, निरन्तर आगमन कर्या करे छे, अने ते कर्मथी भरेल थइने तुं पाणीथी भरेला नावनी माफक नीचेज नीचे चाल्यो जाय छे अर्थात् अधोगतिए पहोंचे छे. ५५. हे आत्मा ! आ आम्रवनुं कारण ताराज योग अने कषाय छे, जे सदा उत्पन्न थया करे छे. आत्माना प्रदेशोमां चंचळता होवाने योग अने शुभ अशुभ रुप परिणामोने कषाय कहे छे. ५६. हे आत्मा ! आ कर्मनो आ आस्रव छे, अने आ कर्मनो आ आस्रव छे, ए रीते सारी रीत जाणीने जे जे कर्मोंना जे जे आस्रव छे, तेना त्याग करीने कर्म अने तेना कारणरूप आस्रव छोडीने मोक्षगामी थइ जा. ५७. ८ संवर भावना.
धारण करतो
हे आत्मा ! तुं अनुप्रेक्षाओनुं ( भावनाओनुं ) चिंतवन करतो करतो, समिति अने गुप्तिओनुं पालन करतो करतो, अने तप, संयम तथा धर्मने करतो, नाना प्रकारना परिषहोने हे आत्मा ! ज्यारे तुं एवो थई जाय, त्यारे कर्मोंनो आस्रव रोकाई जवाथी आ संसाररूपी समुद्रमां ते नावना जेवो थई जा, के जेना पाणी आववाना छेद बंध थई जाय छे, अने तेथी जे
जीत. ५८.