Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 122
________________ ११३ ४ एकत्व भावना. हे आत्मा ! जो के तुं एक शरीरने छोडीने बीजुं धारण करे छे अने पोताना कर्मने अनुसार भ्रमण करतो रहे छे; परंतु जन्म अने मरण वखते तुं सदा एकलोज रहे छे. ४२. बंधुजन फक्त स्मशान पर्यन्त साथे जाय छे, उपार्जीत करेलं धन घरमा रहे छे, अने शरीर भस्म थई जाय छे. केवळ एक धर्म तारी साथ रहेशेः अर्थात् धर्म तारो साथ छोडशे नहि. बीजा सर्व छोडी देशे . ४३. पुत्र, मित्र, स्त्री तथा बीजा लोक जे साथ वचमांज तारे सोबत थई गई छे, ते जो तारी साथै जता नथी, तो तेमां कंई आश्चर्य नथी. आश्चर्य तो ए छे के, तारुं शरीर पण जे आ पर्यायना प्रारंभथीज साथे छे, ते तारी साथे जशे नहि. ४४. तुंज कर्मोनो कर्त्ता अने फळनो भोक्ता छे अने तुंज मुक्तिनो प्राप्त करनार छे, पछी हे तात ! तुं पोताने आधीन मुक्तिने लेवामां इच्छा केम करतो नथी : ४५. हे आत्मा ! कर्मोद्वाराज अज्ञानी थइने तुं स्वाधीन सुख अर्थात् मोक्षसुखने पामवाने तेना उपायोमा अभिलाषा करतो नथी; अर्थात् मोक्ष प्राप्त करवाना जे जे उपाय छे, ते ते करतो नथी; अने उलटो दुःखनां कारमां लागी रह्यो छ ४६. अन्यत्व भावना. हे आत्मा ! हुं देहरूप छु, ए वात तुं कदापि पोताना चित्तमां लावीश नाहे. कर्म करवाथीज तारो शरीर साथ संबंध छे. तुं तो म्यानमा रहेनार तलवार समान छे. ४७, हे आत्मा !

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