________________
थीज ते बधा सहाय करे छे अने जो पुण्यनो उदय न होय, तो तेनु होवू पण निष्फळ छे. ३५.
३ संसार भावना. हे आत्मा ! तुं पोताना कर्मने वश थईने नटनी माफक नाना प्रकारना वेष धारण करीने भ्रमण कर्या करे छे. पापथी तिर्यंच अने नरकगतिमा, पुण्यथी स्वर्गलोकमां अने पुण्य पापथी मनुष्यगतिमां जन्म धारण करे छे. ३६. हे जीव बहु खेदनी वात छे के, तुं लोढाना पांजरामां पुरेला सिंहना माफक एक क्षण मात्र पण जे सहन थतुं नथी एवा दुस्सह देहमां केवी रीते रहे छे ? ३७. ___आ पुद्गलोमां कोई पण परमाणुं एवं नथी, के जेने तें कोईवार भोगव्यु होय नहि. पछी शुं ए पुद्गळोना अंश के जे पीधेल समुद्रना बिंदुनी माफक छे, तेथी तारी तृप्ति थई शके छ ? कदापि नहि. ३८. जे वस्तु भोगवीने छोडी दीधी छे, ते उच्छिष्टने तुं फरी भोगववा इच्छे छे. हवे तुं भोगव्या विनानी अने सर्वोत्तम मुक्तिना आनन्दने भोगववानी इच्छा केम करतो नथी ? संसारमा रागद्वेषथी कर्म बंधाय छ, कर्मथी बीजा शरीरमां जवानुं थाय छे, शरीरथी इंद्रियो उत्पन्न थाय छे, इंद्रियोद्वारा रागद्वेषादि थाय छे अने रागद्वेषादिथी फरी आज रीते संसार चक्रमा भ्रमण करवू पडे छे. ४०, आ कार्यकारणरुप प्रबन्ध अनादिथी चाली रह्यो छे. तेमां नित्य दुःखज मळे छे, तेथी हे आत्मा ! तुं तेने हमणांज छोडी दे. ४१.