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१०७ विषयोमां राजाज प्रजानां माबाप छे. ४. जे रीते दान आप सुखदायक होय छे, तेज रीते ते राजाने कर (महसूल) आपवो पण प्रजाने प्रीतिकर अर्थात् आनन्ददायक थयो. सत्य छे के, शुं धान्यना खेतरमां बी वाववाथी शुद्ध संतुष्ठ थता नथी ? अवश्य थाय छे. भाव एछे के, ते योग्य राजाने कर आपवामां प्रजाने आनन्दज थतो हतो, जेवोके, शुद्रने योग्य खेतरमां बी वाववाथी थाय छे तेम. ५. जो के राजाने मित्र, शत्रु अने उदासीन (मीत्र शत्रु प्रत्ये समभाव राखनार) राजाओनुं साक्षात् ज्ञान होतुं नथी (तेमने ते विषयनुं ज्ञान गुप्त अनुचरो द्वाराज थाय छे ) तथापि गुप्त अनुचरो द्वारा बधो वृत्तान्त जाणीने ते तेनो उपाय तेज बखते करी दे छे. ६. ते नियमपूर्वक काम करनार थया अने रात दिवसना विभागोमां नक्की करेलां कामोने योग्य समये करवा लाग्या, कारण के जे काम वखतसर करवामां आवतुं नथी ते वखत थई गया पछी करवामां आवे छे, तो ते सिद्ध, धतुं नथी. ७. जेम तपमां योग्य क्षेमनी अर्थात् मन वचन कायारुप योगोने रोकवानी आवश्यकता छे, तेज रीते राज्यमां योगक्षेमनी अर्थात् नहि पामेलाने पामवानी अने पामेलानी रक्षा करवानी आवश्यकता छे. तेथी राज्य अने तप बन्ने सरखांज छे. ८. ज्यारे ते महाराज सावधान थईने बी पृथ्वीनी एक नगरीना समान मोटी सुविद्याथी रक्षा करवा लाग्या, ते वखते त्यांनी पृथ्वी निष्कंटक शासन थवाथी पोताना रत्नागर्भा नामनुं सार्थक करवा लागी. ९.