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ए रीते ज्यारे ते महाप्रतापी राजाओना राजा जीपंधर विरजमान थया हता-राज्य करता हता, त्यारे तेमनी माता विज्या संसारथी विरक्त थई गयां; अर्थात् तेमने वैराग्य उप्तन्न थई गयो. १०. (ते विचारवा लाग्या के,)-...." में आ श्रेष्ठ पुत्रने तेना पितानी पदवीए जोई लीधो; अर्थात् तेने राजाना पदपर प्रतिष्ठित जोई लीधो. अने पहेलां जेमणे उपकार कर्यो हतो, ते पण यथायोग्य कृतकृत्य करवामां आव्या अर्थात् ते बधानो प्रत्युपकार करवामां आव्यो. ११. अने पुण्य पापनुं फळ शास्त्रा सिवाय में पोते पोतानामांज जोई लीधुं. पछी कर्मोनुं परिपक्वपणुं अन्यत्र जोवानुं शुं प्रयोजन छे ? १२. तेथी हवे हुं पुत्रनो मोह छोडी दईने जेवू जोईए तेवू तप करीश, कारण के सर्व कई जाणीने पण संसाररुपी कुंडमां पडी रहेवू नीच मनुष्यनुं काम छे. १३.
विजयाना आ रीते विरक्त थई जवाथी सुनन्दाने पण वैराग्य थई गयो, कारण के पुण्य अने पापनो उदय थवामां कोईने कोई बाह्य कारण अवश्य होय छे; अर्थात् विज्याना वैराग्यनुं कारण मळवाथी तेने पण वैराग्य थई गयो. १४. अने पछी ते बन्ने शोकयुक्त राजा पासेथी कोईने कोई रीते सम्मति लईने त्यांथी चाली गई अने बन्नेए विधिपूर्वक जीनदीक्षा लई लीधी. १५. ते वखते बधी आर्जीकाओमां श्रेष्ठ जे पद्मा नामनी आर्जीका हती, ते आ बन्ने राजमाताओने आर्जीकार्नु पद