Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 113
________________ केम करे नहि ? " अर्थात् जे देशमा उत्तम राजा होय छ, त्यांनी प्रजा अवश्य सुखीज थाय छे, ५४. महाराजे काष्ठांगारना कुटुंबने पोताना स्थानमा सुखथी रहेवानी आज्ञा आपी दीधी, तेमने कोई प्रकार- कष्ट आप्यु नहि, कारण के सज्जनोनो क्रोध अयोग्योपर थतो नथी. ५५. पछी पोताना भाई नन्दाढयने युवराजना पदपर, पिता गंधोत्कटने वृद्ध क्षत्रीओना योग्य पदपर, अने बन्ने माताओने ( विज्या अने सुनन्दाने ) लोकपूज्य पदपर स्थापन करी. ५६. पृथ्वीने बार वर्षना करथी ( टेक्षथी ) रहित करी दीधी अर्थात् जमीनन महेसूल बार वर्ष माटे बीलकुल माफ करी दीधुं, कारण के जे पाणीने भेसो डोळी नांखे छे, ते तरतज ठरीने निर्मळ थतुं नथी. भाव ए छे के, काष्ठांगारे अनुचित असह्य कर वसूल करीने प्रजाने एटली निर्धन बनावी हती के, आ रीते बार वर्ष माटे कर छोडी दीधा विना प्रजानी आर्थिक अवस्था तत्काळज सारी थवानी नहोती. ५७. त्यार पछी जीवंधर महाराजे पद्मास्य आदि मित्रोने पण यथायोग्य पदवी आपी. कारण के लोक साधारण परिज्ञानथी रंजायमान थता नथी; अर्थात् कोण कया पदने योग्य छे, तेनुं पुरुं ज्ञान थवाथी अने तेने अनुसार लोकोने योग्य पद आपवाथी ते प्रसन्न रहे छे. ५८. ते वखते महाराजनी आज्ञाथी तेमनी पद्मा आदि बधी । राणीओ आवी गई अने ते स्वामाने जोईने क्षणवारमा संपूर्ण मानसिक व्यथाओथी रहित थई मई. तेमना मननी बधी

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