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कारण के जीवोने स्वभावथीज पोताना काममां तप्तरता रहे छे. २५. तेणे पूछ्यु के,—गायन विद्या समान तमारी बीजा कोइ विषयमां शक्ति छे ? अर्थात् बीजी पण कोई विद्यामां तमे निपुण छो के नहि ? सत्य छे के जो ज्ञानी पुरुषोने कंई प्रार्थना करवामां आवे अने ते निष्फळ जाय, तो ते जीवता नथी-तेमने मरवुज थई जाय छे. अभिप्राय ए छे के, जो सुरमंजरी एवो प्रश्न करे के, तमो अमुक विद्या जाणो छो, अने कदाच ते न जाणता होय, तो ते उत्तर आपवामां तेने मरवू थई जाय छे के, 'हुं जाणतो नथी.' तेथी तेणे एवी युक्तिथी पुछ्युं के, जेथी ते कोई ने कोई विद्यामां पोतानी गति बतावी दे. २६. त्यारे ते बहु चतुर बुढ्ढाए उत्तर आप्यो के, " हा ! बधा विषयोमां मारी शक्ति छे, अने ते खूब छे. " कारण के कहेवानी चतुराईथी कहेला विषयमा बहु दृढता आवी जाय छे. २७. आ सांभळीने सुरमंजरीए पोते ईच्छेला वरने पामवानो उपाय पूछ्यो, कारण के जो कोई प्रीतिमां अंध थई जाय छे, तो तेना मनमा ए वातनो विचार नथी थतो के, आ याचनाथी दीनता प्रगट थशे. २८. बुढ्ढाए बताव्यु के-" सर्व मनोरथोने सफळ करनार कामदेव छे. " कारण के इष्ट मनोरथने अनुकूळ बचनज प्राणीओना मनने प्रसन्न करे छे. २९. आ सांभळीने सुरमंजरीए पोताना ईच्छित पदार्थने पोताना हाथमां आव्योज समझी जे माणस मनोरथोथीज संतुष्ट थई