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मारी कन्या परणावीश. ठीकज छे के, जे लोक उत्तम उपायोमां तत्पर रहे छे, ते कार्यने नियमथी सिद्ध करे छे.२३. ढंढेरो सांभळीने त्रणे वर्णना कुळमां उसन्न थएल ( ब्राह्मण, क्षत्रि, वैश्य ) धनुर्धारी एकठा थई गया; कारण के ज्यां सुधी मोह रहे छे, त्यां सुधी जीवोनो प्रयत्न एवी वस्तु पामवा माटेज होय छे, जे तेमने योग्य होतो नथी. २४. परंतु ते बधाज धनुर्धारी ते यंत्रनां मूंडने छेदवामां समर्थ थया नहि, कारण के पारगामिनी अर्थात् सम्पूर्ण विद्या क्यां राखी छे ? २५. आखर विज्याना पुत्रे अर्थात् जीवंधर कुमारे चंद्रकयंत्रपर चढीने अलात चक्रथी त्रणे मूंडने रमतमां तरतज वेधी नांख्यां सत्य छे के, शुं सूर्य अंधकारनो नाश करनार नथी ? २६.
आ वखते अवसर जोईने गोविन्दराजे त्यां जेटला राजा एकठा थया हता, ते बधाने कही दीधुं के, ते महाराजा सत्यंधरना पुत्र छे. ठीकज छे, के कृती पुरुषोनी वाणी योग्य स्थानमांज होय छे; अर्थात् विद्वान पुरुष अवसर जोईनेज बोले छे. २७. ए सांभळीने ते राजाओए पण एवं कह्युं के, - ' हें ! अमने पण याद आवी गयुं. ' गोविन्दराजनी वात मानी अने राजपुत्रनुं अभिनन्दन कर्यु, कारण के जे पुरुष आलीढादि पांच स्थानमां चतुर होय छे, तेनुं नरेन्द्रत्व अथवा राजापणुं सूचित थाय छे; अर्थात् कुमारनी धनुर्विद्यानी उपर कहेली चतुराई जोईने तेमणे जाणी लीधुं के, निश्चयेज आ राजानो पुत्र छे. २८.