Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 106
________________ करीने अहीं आवो. ) आपना आववाथी हुं निःशल्य थई जईश; अर्थात् मारा चित्तमा जे आ अपजशनो कांटो भराई रह्यो छे ते नीकळी जशे, कारण के सज्जनोनी साथे जो संगम थई जाय, तो दुष्ट माणसोमां पण सज्जनता आवी जाय छे. १३." आ संदेशाथी ए निश्चय थयो के, शत्रु बहु जल्दी नुकशान करवा ईच्छे छे. सत्य छे, के दुर्जनोनुं नम्र थq, पण धनुष्यना नमवानी माफक भयानक होय छे. १४. शत्रु अमने नुकशान करवा ईच्छे छे, ए जोईने पोतानुं काम करवा सिवाय जेने कई पण सुझतुं नहोतुं, एवा गोविन्दराज संतप्त थइ गया. सत्य छे के-दुर्जनना आगळ सज्जनता बताक्वी ए कीचडमां दूध नांखवा बराबर छे. भाव ए छे के, काष्ठांगारपर कोप करवोज योग्य हतो. तेनी साथे शान्तिनुं वर्तन करवू कीचडमां दूध नाखवा समान छे. १५. " तेणे अमने कोई मतलबथी बोलाव्या छे, तेथी अमे पण तेना आ बोलाववाना व्हानाथी त्यां जइए छीए, अर्थात् ज्यारे तेणे अमने छळ करीने बोलाव्या छे, त्यारे अमे पण तेना आ छळथी लाभ लेवाने-तेने उलटुं नुकशान आपवा त्यां जईए छीए " ए वात सारी रीते गोविन्दराजे नक्की करी. सत्य छे के-जे लोक कोईने जीतवा इच्छे छे, ते बगला माफक आचरण करे छ; अर्थात् बगला सरखा बहारथी साधु बने छे, परंतु अंदरथी घात करवाना प्रयत्नमां रहे छे. १६. पछी तेणे बधा लोकमां ए प्रसिद्ध कराव्युं के, मारी काष्ठांगार

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