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काष्ठांगार जीवंधर कुमारने जोईने क्षीणचित्त थई गयो, तेनो उत्साह भंग थई गयो अने राजाओनी उपली वात सांभळीने तो ते मूर्ख मरेला जेवो थईने आ रीते विचार करवा लाग्यो;-२९. “जो ते सत्यंधरनो पुत्र होय, तो हाय ! हुं हमणांज मार्यों गयो, कारण के पृथ्वी वीरभोक्ता छे. जे वीर होय छे तेज पृथ्वीने भोगवे छे. अने पछी जेमां सर्व प्रकारनी योग्यता छे तेनुं तो कहेवूज ? ३०. ते वखते मथने मारी आज्ञाथी आ कुत्सित वणीकने केवो मार्यो हतो, पण जो ते बची गयो. सत्य छे के, आ लोकमां पोताना हितने माटे पोताना सिवाय बीजु कोई सामुहितकारी:नथी. ३१. अने तेना दुराशय मामाने में व्यर्थ केम बोलाव्यो ? सत्य छे, के मूर्ख लोक पोताना नाशने माटे पोतेज काम उठावे छे. ३२. गोविन्दराज साथे मळीने ए दुर्दान्त अर्थात् कठीणाइथी दमन करनार कुमार शुं करशे ? वायुनी प्रेरणाथी वायुनो मित्र अमि पृथ्वीनी कई वस्तुने बाळतो नथी ? भाव ए छे के, ए बन्ने मळीने मारो बधो नाश करी नांखशे. " ३३. ए रीते ज्यारे शत्रु (काष्ठांगार) चिंताथी व्याकुळ थई रह्यो हतो, त्यारे स्वामीना मित्रोए तेनुं अपमान करता करता तेथी पण विशेष चिंतातुर को. सत्य छे के, जेनां पुण्य कर्म क्षीण थई जाय छे, तेनी पाछळ विपत्तिओ लागीज रहे छे. ३४. तेथी आ अपमानथी क्षुब्ध थईने मत्सर करनार काष्ठांगारे जीवंधर साथे युद्ध करवा धार्यु, कारण के जे पुरुष मत्सरी होय छे--बीजानी भलाईथी