Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 92
________________ 13 आव्या. ३८. पछी रस्ते लांघीने मार्गनो थाक दूर करवा माटे अमे तपस्वीओना प्रसिद्ध दंडकारण्यमा विश्राम कर्यो. ३९. पछी चार तरफ नवी नवी मनोहर वस्तुओ जोता जोता अने ते वनमा विहार करता करता अमे कोई एक स्थानमां आपनी पुण्यस्वरुपा माताने दीठी. ४०. अमने जोतांज माताए प्रश्न कों के, तमे क्यांथी आव्या ? त्यारे अमे पण माताना प्रश्ननो यथाक्रम उत्तर आपवानो प्रारंभ कर्यो;-४१“राजपुर नगरमां एक पंडतोनो अने वैश्योनो शिरोमणि जीवक नामे पुरुष छे. अमे बधा तेना अनुजीवी अथवा दास छीए. ४२. त्यां कोई काष्ठांगार नामे पुरुष ते निरपराधीने मारवाने माटे-" बस अमे एटलुंज कह्यु के, माता मूर्छा खाईने पडी गई. ४३. " हाय ! हाय ! हे माता ! जीवक मर्यो नथी." ज्यारे में आ प्रमाणे कयु, त्यारे ते जेनो प्राण नीकळवाने रोकाई गयो हतो, सचेत थईने प्रलाप करवा लागी. ४४. जेम मेघमाळा वज्रपात अने पाणीनी वर्षा एक साथ करे छे, तेमज माताए प्रलाप करतां करतां पोतानी वीतेली बधी कथा संभळावी अर्थात् तेमनो प्रलाप अमारा हृदयमां वज्रपात समान प्रतीत थयो अने आपनुं वृत्तान्त जळधारा समान. ४५. तेमना मुखरुपी आकाशथी वरसती आपनी उन्नतिरुपी रत्नानी वर्षा पामीने अर्थात् माताना मुखथी आपनी उन्नतिना समाचार सांभळीने अमे ए समज्या के, मानो बधी पृथ्वीज अमने मळी गई छे. ४६. त्यार पछी आफ्ना वैभवना महिमाना वर्णनथी माताने

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