Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 87
________________ ७८ तेने पहेला प्रश्न करवानुज कुतूहळ थाय छे. ५. ते बोली, " हे स्वामी ! आयुधशाळामां में आपने एकज वखत अभेद रुपथी दीठा छ; अर्थात् जे वखते आप अहीं हता, ते वखते आपनाज सरखो कोई पुरुष आयुधशाळामां पण हतो." ६. पवित्र जीवधरने आ वात सांभळीने बहु आश्चर्य लाग्यु, कारण के अयुक्त अथवा न थवानी वात जोवा सांभळवाथी आश्चर्य थाय छेज. ७. पछी तेमणे तर्क कों-विचार कों के, शुं अहीं नन्दाढय आव्यो छे ? (तेणे खास तेनेज दीठो हशे, कारण के ते मारीज सीकलनो छे). सत्य छे, के संसारना विषयोमा मनना तरंग तत्काळज अने आपोआपज चाले छे. ८. नन्दाढयना स्नेहने लीधे जीवंधर कुमार- शरीर मनना व्यापारथी पहेलुंज आयुधशाळामां पहोंच्यु; अर्थात् त्यां बहु जल्दी जइ पहोंच्या, कारण के आस्था होवाथी कोई कोई वखत यत्न वगर पण वचन अने कायानी चेष्टा थइ जाय छे. ९. अने त्यां जइने ते नन्दाढयने जोइने बहुज प्रसन्न थया, कारण के प्रथम तो भाई- मळवुज प्रीतिकर अथवा आनन्ददायक होय छे, पछी वियोगी भाइजें तो कहेवुज शु ? अर्थात् वियोगी, मळवु वधारे हर्षनुं कारण होय छे. १०. नानो भाई पण तेमने जोईने दुःखसागरथी तरी गयो; कारण के लांबा वखत सुधी दुःख सहेवा पछी सुख मळवाथी दुःखनुं विस्मरण थई जाय छे. ११. पछी मोटा भाईए नानाने एकान्तमां पूछयु के, तमे अहीं केम आव्या छो ? " कारण के

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