Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 84
________________ ___ ७६ शोधमां छे के जे धनुर्विद्यामां प्रवीण होय. जो आप तेमां कई दोष न समजो. तो ते पण जुओ अर्थात् मारा पिताने मळो. ७०." ते पुरुषनां उपरनां वचन सांभळीने विद्वान स्वामीए कई विरोध को नहि, अर्थात् ते तेना पिताने मळवाने राजी थईने गया. सत्य छे के देव मनुष्यने जातेज इष्ट पदार्थो मेळवी आपे छे. ७१. त्यार पछी जीवंधर कुमार राजाने जोईने अने तेनाथी आदरसत्कार पामीने तेने वश थई गया. संसारमा एवो कोण सचेतन छे के जे अनुसारप्रिय न होय; अर्थात् पोतानी ईच्छानुसार चालनारना वशमां बधाज रहे छे. ७२. राजाए पण क्षण मात्रमा तेमनु महात्म्य जोई लीधुं, कारण के शरीर मनुष्यना प्रभावने अक्षर रहित परंतु स्पष्टरुपथी कही दे छे; अर्थात् शरीरनी चेष्टाथी मनुष्यनो प्रभाव जणाई आवे छे. ७३. पछी राजाए पोताना पुत्रोने शीखववाने तेमने बहु प्रार्थना करी, कारण के विद्या गुरुनी आराधना करवाथीज प्राप्त थाय छे अने बीजा कशा साधनथी नहि. ७४. वारंवार प्रार्थना करवाथी जीवंधर कुमार पण विद्या भणाववाने तैयार थया, कारण के उत्तम विद्या तो ते पोते जातेज आपवी जोईए, पछी प्रार्थना करवाथी तो कहेज शुं ? अर्थात् अवश्य आपवी जोईए. ७५. पछी पवित्र जीवंधर स्वामीए राजाना पुत्रोने खरा मनथी विद्या शीखवी, कारण के जे कृतार्थ अने धर्मात्मा छे ते पोताना संसारीक प्रयोजननी ईच्छा नहि करतां बीजार्नु हित करे छे. ७६. राजाना पुत्रो पण परिश्रम करीने प्रत्यक्ष आचार्यरुप

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