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तेथी राजाओना विषयमां जे कई इष्ट के अनिष्ट कर्म करवामां आवे, ते मानो के बधा लोकनी साथे इष्ट के अनिष्ट करवा जेवुं छे. ४६. ए रीते जे राजद्रोहना करनार छे, ते बधा द्रोहना उत्पादक छे; शुं राजद्रोही पंच महा पापोना करनार नथी ? अवश्य छे; अर्थात् ते हिंसा, जुठ, चोरी, कुशील अने परिग्रह ए पांच महापापोनी करनार छे. ४७. आ लोकमां राजा लोक देव अने जीवधारी बन्नेनी रक्षा करे छे; परंतु देवता पोते पोतानी पण रक्षा करता नथी तेथी सिद्ध छे के, राजाज सर्वोत्कृष्ट देवता छे. ४८. अने वळी सांभळो, - देवता तो फक्त एक देवद्रोही मनुप्यनेज मारे छे; परंतु राजा तो राजद्रोहीना वंशने बल्के वंशथी उल्टा बीजा संबंधी लोकोनो पण तत्काळज नाश करे छे. ४९. धनवान पुरुषोना जीवननो उपाय करनार अने शत्रुओनो नाश करनार राजाओनी अद्मिनी समान सेवा करवी जोईए. जेम अमिनी जो अनुकूल थईने सेवा करवामां आवे छे तो तेथी जीवननो उपाय भोजनादि थाय छे अने जो तेनाथी विरोध करवामां आवे छे तो नाशनुं साधन थाय छे; तेवीज रीते राजाओ साथे अनुकूळता प्रतिकूळता करवाथी हानि थाय छे." ५०
धर्मदत्त मंत्रिनुं एवं धर्मयुक्त वचन पण ते दुष्ट कर्मवाळा काष्टांगारने मर्मभेदी के हृदयविदारक लाभ्युं अर्थात् तेने बहुज खोढुं लाग्युं, सत्य छे के पित्तज्वरवाळाने दूध पण तीखं लागे छे. ५१. तेणे कृतघ्नतादि दोष अने गुरुद्रोह, अने वधा