Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

View full book text
Previous | Next

Page 61
________________ ५२ जाय-अर्थात् ते न करे, तो एवा पांडित्य अने ऐश्वर्य होवार्नु शुं फळ ? अर्थात् कई पण नहि." २०. ज्यारे आवो विचार करीने बधा लोक मनमा पीडावा लाग्या, त्यारे कुमारना बधा मित्र तेना भाई नन्दाढय सहित पश्चाताप करवा लाग्या अने युद्ध करवाने तैयार थया. २१. तथा तेनां माता पिता मुनिनां वाक्यने याद करतां जीवतां रह्यां जो मुनिनां वाक्य पण जुठां थयां, तो पछी कोई वचन- पण प्रमाण न रह्यु. २२. ते वखते स्वामीने हर्ष के खेद कई पण थयुं नहि, परंतु पूर्व जन्ममा करेलां कर्मोनुं फळ अवश्य भोगवq पडशे, एवो विचार तेमना मनमा उत्पन्न थयो. २३. ___ त्यार पछी ते यक्षेन्द्र जीवंधरस्वामीने चंद्रोदय पर्वत पर पोताने घेर लई गयो अने त्यां तेणे तेमने जळथी स्नान कराव्यु. २४. अहीं एवं समजवू जोईए के, पुण्य कर्मना उदयथी विपत्ति सम्पत्तिनुं कारण थई. जेमके सूर्य संसारने तो तापथी तपावे छे, परंतु कमळने खीलावीने शोभायमान बनावे छे. २५. यक्षेन्द्रे स्वामीनो क्षीरसागरना जळनी धाराथी अभिषेक करीने का के-तमे मने कुतरानी अवस्थामा पवित्र कर्यो हतो, तेथी आप पवित्र छो. २६. पछी तेणे स्वामीने त्रण मंत्रनो उपदेश कर्यो, जेथी ते पोतानी ईच्छानुसार जेवी आकृति ईच्छे तेवी ग्रहण करी शके, गायन विद्यामां प्रवीण थई गया, अने सापर्नु विष दूर करवामां समर्थ थया. २७. अने तेणे ए पण कह्यु के, " हे पवित्र स्वामी ! तमे एक वर्षमा राजा थई जशो अने

Loading...

Page Navigation
1 ... 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132