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अर्थात् जीवहत्या थाय छे, तथा ए तप जन्ममरणरूप संसारनुं कारण छे. मोक्षनो हेतु नथी. १३. तप एज छे, के जेमां जीवाने कदापि संताप के पीडा थाय नहि, अने ते तप खेती व्यापारादि आरंभोनो त्याग करवाथीज थाय छे, कारण के आरंभथी हिंसा थाय छे. १४. अने आरंभनी निवृत्ति अर्थात् त्याग निर्ग्रन्थ मुनिओमांज होय छे, कारण के पृथ्वीमां जे लोक कार्यथी विमुख होय छे ते कारणनी शोध करता नथी; अर्थात् जेने कोइ संसारीक कार्य करवानुंज होतुं नथी, ते तेने माटे आरंभादि पण करता नथी. १५. यतिधर्म के आरंभत्यागज वास्तविक तप छे. तेथी उल्टुं जे कंइ छे, ते संसार अर्थात् जन्ममरणनां साधक छे. जे लोक मोक्ष ईच्छे छे, ते बीजुं तो शुं, परंतु पोताना शरीरने पण तुच्छ समझे छे. १६. संसार तो रागद्वेषादि दोषोमां फसावनार छे, तेथी तेनाथी परिक्षय अर्थात् मोक्षनी प्राप्ति थती नथी. जे वस्त्र रुधिरथी दूषित छे, ते शुं रुधिरथीज शुद्ध थई शके छे ? कदापि नहि. १७. जे लोकोने यथार्थ तत्त्वज्ञान नथी, तेमनुं यति थवं पण निष्फळ छे. जेम के पाणी, अमि, थाळी वगेरे सामग्रीना होवा छतां पण जो चोखा न होय तो अन्न पकावी शकातुं नथी तेम १८. जीवादि तत्त्वोनो (जीव, अजीव, आस्रव, बंध, संवर, निर्जरा अने मोक्ष ए सात तोनो) यथार्थ निश्चय थवो अर्थात् तेमनुं जे स्वरुप छे, तेने तेज रुपे जाणवुं ते सम्यग्ज्ञान छे. अने लोकमां तेथी जे उलटुं ज्ञान छे तेने मिथ्याज्ञान के मिथ्यात्व कहे छे.