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वानुं पण ते सर्वोत्कर्षवान् परमश्वरने केवी रीते बने ? अर्थात् ते कोईथी रागद्वेष पण करता नथी. २७. जो ईश्वर दोषरहित छे, अने तेने कोई कार्य पण करवानुं बाकी रह्यं नथी, तो पछी ते कृतीने करनारने] कृत्यथी शुं ? अर्थात् ते कार्यज शंकरशे ? जो कहेशो के, स्वेच्छाचारथी करे छे, तो ते पण ठीक नथी, कारणके स्वेच्छाचार तो उन्मत्तमांज देखाय छे, उत्तम पुरुषमां नहि; अर्थात् उन्मतज स्वेच्छाचारी होय छे. २८. आ रीते उपदेश आप्यो, तेथी केटलाक तपस्वी धर्मात्मा बन्या, कारणके पाणी सींचवाथी सारी माटी तो ओगळी जाय छे, परंतु पत्थर ओगळता नथी. २९. त्यारे ते पंडित, स्वामी धर्ममां लागेला तपस्वीओने जोईने बहु प्रसन्न थया. सत्य छे के आ संसारमा सज्जन पुरुषोने पोताना उदय के कल्याणनी अपेक्षाए बीजार्नु कल्याणज अधिक प्रीतिदायक होय छे. ३०. पुरुषोनुं त्रणे लोकमां सम्यग्दर्शन, ज्ञान अने चारित्रनी प्राप्तिथी अधिक बीजूं ऐश्वर्य कयुं हशे ? बीजां इंद्रायणना फळ समान ऐश्वर्यना धोकामां नांखनार संसारीक ऐश्वर्यथी शुं ? अर्थात् जेम इंद्रायण- फळ जोवाथी सारुं होय छे, परंतु ते अंदरथी बहुज खराब होय छे, ए रीते संसारीक ऐश्वर्य जोवामां सारूं लागे छे, परंतु यथार्थमां ते अंदरथी बहुज खराब होय छे. खरं ऐश्वर्य सम्यग्दर्शन-ज्ञान चारित्ररुप रत्नत्रय प्राप्त कर तेज छे. ३१.
त्यांथी चालीने जीवंधर स्वामी दक्षिण देशमां सहस्रकूट चैत्यालय पहोंच्या, अने त्यां तेमणे जिनालयनी आ रीते स्तुति