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परिपूर्ण थवाथीज पूर्ण थाय छे. १४. आत्मानेज अनन्त ज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्त आनन्द अने अनन्तवीर्यादि गुणवाळो जाणीने, पुत्र, स्त्री वगेरेने तो शुं, परंतु पोताना शरीरने पण आत्माथी भिन्न समज. १५. ए रीते आ भिन्न स्वभावनो धारण करनार जीव अज्ञानताने लीधे शरीरने निजत्व बुद्धिथी जाणे छे; अर्थात् शरीरने पोतानाथी पृथक् समझता नथी. अने तेथी देहथी बंधाय छे अर्थात् वारंवार शरीर धारण करे छे. १६. संसारमा आत्मा अज्ञानताथी शरीर धारण करवाना कारणभूत कर्म बांधे छे अने पछी शरीरथी अज्ञानता थाय छे. आ प्रबन्ध अनादि काळथी चाल्यो आवे छे; अर्थात् अज्ञानताथी शरीर धारण थाय छे, शरीरथी अज्ञानता थाय छे, अने तेज कर्म बंधननो प्रबंध संसार छे. १७. आत्माने आत्मत्वथी अने देहने देहत्वथी जोइने तुं आत्माथी भिन्न जे देह छे, तेने त्यागवानी बुद्धि कर, कारण के अन्य प्रकारनां नाश थनार कार्याथी शो लाभ ? १८. पर पदार्थोनो त्याग करनार अथवा त्यागी बे प्रकारना जाणवा जोइए, एक अनगार के यति अने बीमा सागार के गृहस्थी. एमांथी पहेला जे यति छे, तेमन शरीर मात्र धन छे, अर्थात् शरीर सिवाय तेमने बीजा कोइ प्रकारनो परिग्रह होतो नथी, अने ते बधां पापोथी रहित होय छे. १९. परंतु तुं ते यतिओना मूळोत्तरादि गुणने धारण करी शकीश नहि, जेमके वनायु देशना घोडा हाथीनां पलाण अथवा झूलना भारने उठावी शकता नथी. २०. तेथी तुं