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प्रतिज्ञा करवी, अने दान वगेरेथी संयमी पुरुषोनी सुश्रूषा करवी, ए चार शिक्षाव्रतोनां अनुक्रमे चार कार्य छे. २७. अणुव्रती श्रावक ए सात शीलथी अर्थात् गुणवतो अने शिक्षाव्रतोथी कोइ कोइ देशनी अपेक्षाए (जेनो त्याग करी चूक्या छे ) अने कोइ कोइ वखत (सामायिक आदि धारण करवाथी) महाव्रतीनी समान गणाय छे, तेथी गृहस्थ धर्म धारण करवो जोइए.” २८. आ सांमळीने ते शुद्रे गृहस्थधर्मनो स्वीकार कर्यो. सत्य छे, के भाग्यनो उदय थवाथी कयो पुरुष क्यारे अने केवो थतो नथी अर्थात् शुभ कर्मनो उदय थवाथी सर्वने सर्व समय बधी वातनो लाभ थाय छे. २९. पछी ते दानना जाणनार दानी कुमारे तेने पोतानां भूषणवस्त्र उतारीने बहु आदरथी आपी दीघां. सत्य छे के सज्जनोनुं चित्त आपवामांज प्रसन्न रहे छे, लेवामां नहि. ३०. आ अमूल्य अने अकल्पित अर्थात् धार्या विनाना धनना लाभथी ते बहुज प्रसन्न थयो, कारण के संसारमा तात्कालीक विषयसुखनी प्रीतिज विशेषताथी थाय छ; अर्थात् जीवने ज्यारे विषय सुख मळे छे, त्यारे ते बहुज आनन्दित थाय छे. ३१. त्यार पछी स्वामी तेने छोडीने तेनुं स्मरण करतांज त्यांथी चाल्या गया. सत्य छे के सज्जन पुरुष सन्मुख अने पीठ पाछळ बन्ने अवस्थामा एक सरखाज रहे छे. ३२.
आगळ चालतां जीवंधर कुमार थाकीने कोई जंगलमा उपद्रव रहित थईने बेठा. पुण्यज सर्व जीवोने शरण आपनार छे, बीजं कोई नहि. ३३. त्यां तेमणे एक एकली स्त्रीने जोईने