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१९. साचा जिनेश्वरदेव, तेमणे उपदेश करेल शास्त्र अने जीव, अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष, पुण्य अने पाप ए नव पदार्थ ए त्रणना यथार्थ ज्ञानने सम्यग्ज्ञान कहे छे. तेमां रुचि अथवा श्रद्धा होवाने सम्यग्दर्शन कहे छे अने ए बन्नेने अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञानने पोताना आत्मामां अस्खलित वृत्तिथी धारण करवाने अथवा आचरण करवाने सम्यक्चारित्र कहे छे. २०. आज त्रण अर्थात् सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान अने सम्यक्चारित्रनी एकता मुक्ति प्राप्त करवानो मार्ग छे. तेथी भिन्न बीजा कोई मार्ग नथी. तेथी उल्टा जे बधा बाह्य तप छे, ते ए त्रणना साधक छे. (बाह्य तप छ प्रकारना छे,-१. अनशन अर्थात् उपवास करवो, २. उनोदर अर्थात् थोडं खावू, ३. वृत्तिपरिसंख्या अर्थात् कोई एक अन्नने ग्रहण करवू अथवा भोजनमां कोई प्रकारनी आखडी लेवी, ४. रसपरित्याग अर्थात् घी, दूध वगेरे रसोमांथी कोई एक अथवा बे त्रण के बधा रसो खावानो त्याग करवो, ५. विविक्तशय्यासन अर्थात् कोई एकाद स्थानमां नियत आसनथी रहेवू, ६. कायक्लेश अर्थात् टाढ तडको वगेरे शारीरिक कष्ट सहन करवा.) २१. बाह्य तप विना अभ्यन्तर तप थइ शकतुं नथी, जेमके आमि वगेरे सिवाय भात चढतो नथी तेम. ( अभ्यन्तर तप पण छ प्रकारना छे,-१. प्रायश्चित्त अर्थात् कार्य करवामां जे दोष लाग्या होय, तेनो गुरुनी आगळ साचा मनथी प्रकाश करवो अने आपेला दंडने संतोषथी सहेवो. २. विनय अथवा नम्रता.