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६२ करी;-३२. “ हे भगवान् ! मारा दुर्नयरुपी अंधकारथी व्याप्त मार्गमां आप मोनो प्रकाश करनार दीपक होजो; अर्थात् मने परम ज्ञान आपो, जेथी मारुं अज्ञान दूर थाय. ३३. हे भगवान्! हुं आजन्म जरा मरणरुप संसार वनमां जन्मांधनी माफक फरी रह्यो छु. अहीं आपनी भक्तिज मने मुक्ति आपनार अने सन्मार्गमां प्रवृत्त करावनार छे. ३४. विवादरहित अने अखंडित स्याद्वादमतना मुख्य प्रवर्तक अने उपदेष्टा श्री शान्तिनाथ जिनदेव भवसागरनां दुःख निवारण करवाने मारा मनमां दृढ शान्ति उत्पन्न करो. " ३५. एते स्तुति करवाथी ते जिनालयनां कमाड आपोआप उघडी गयां, कारण जे मुक्तिरुपी द्वारनां कमाडने पण तोडीने उघाडे छे, ते कइ चीजने तोडी शकता नथी? अर्थात् मोक्षदाता स्तोत्र सर्व कंह करी शके छे. ३६. एमां कांइ आश्चर्य नथी के, ते पूजनी ते वातकरी बतावी के जेने बाजुं कोइ करी शकतुं नहोतुं. सूर्य बधा लोकमां प्रकाश करी दे छे, परंतु तेथी aist पण आश्चर्य तं नथी. ३७.
एटलामा कोइ पुरुषे तेनी पासे आवीने प्रीतिपूर्वक नमस्कार कर्या. सत्य छे के प्राणी पोतानी मनोकामना प्राप्त करीने शुं संतुष्ट थता नथी ? अर्थात् जेना मनोरथ सफळ थाय छे, ते संतुष्ठ थाय छेज, ३८. स्वामीए तेने जोइने पूछयुं के,
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' हे आर्य ! आप कोण छो ? " सत्य छे के नम्र पुरुषोमां एकरुपता राखवी अर्थात् नीच पुरुषोने पोताना समान समजवा तेज प्रभुओनी प्रभुता अने मोटानुं मोटपण छे. ३९. ए बात पूछतांज ते पण तरतज