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सहायता करे. ३५. ते वखते मेघ गरज्यो अने वरस्यो. अहो ! निश्चयथी पुण्यवानोनी ईच्छा अने मनोकामना सफळज थाय छे. ते हाथीओने बचेला जोईने जीवंधर बहुज संतुष्ट थया; परंतु पोते पोताना बंधन अने विमोक्षमां उदासीन रह्या; अर्थात् दावाग्निमां पोताना फसाई जवाना अने पछी तेथी बची जवाना ख्यालथी तेमणे शोक कर्यो नहि, तेमज हर्ष पण कर्यो नहि. ३७. सज्जन पुरुषोनो ए स्वभावज छे के, ते पोताना सम्पत्ति अने आपत्तिकाळमां तो मध्यस्थ रहे छे, परंतु बीजानी सम्पत्तिमां सुखी अने तेनी विपत्तिमां दुःखी थाय छे. ३८ .
पछी जीवंधर स्वामी त्यांथी नीकळीने तीर्थोमां पूजा करवा गया, कारण के वस्तुओनुं खरं के खोटापणुं अने खराब के सारापणं तेना संसर्गथी के पासे जवाथीज जणाय छे. ३९. त्यां धर्मनी रक्षा करनार एक यक्षिणीए आवीने ते धर्ममूर्ति कुमारने सारी रीते अन्न वस्त्र आपीने आदर सत्कार कर्यो . ४०. अने लोक तो शुं, परंतु देवता पण धर्मात्मा पुरुषोनी पूजा करे छे, तेथी सुख इच्छनारे धर्ममां प्रीति राखवी जोइए. ४१.
पछी ते स्वामी चालता चालता पल्लवदेशनी चन्द्राभा नामनी नगरीमा शुभ निमित्तथी गया, कारणके आगळ थनार वातनुं कंइने कंइ निमित्त के कारण अवश्यज होय छे. ४२. त्यां तेमणे राजा धनपतिनी पुत्री, के जेने सापे करडी हती, तेने जीवतदान आप्युं. सत्य छे के सज्जनोनो स्वभाविक गुण