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५५ एज छ के, हेतु विना बीजानी रक्षा करवी. ४३. ते पुत्रीना मोटा भाइ लोकपाले ते जाइने स्वामीनो बहु आदर सत्कार कर्यो, कारणके जीवतदान देवावाळानो बीजो कोइ प्रत्युपकार नथी. ४४. सज्जन पुरुष पाते पूजनीक होय छे अने बीजा सज्जनोना पूजक पण होय छे, कारणके पूज्यनी पूजानुं उल्लंघन करवाथी पूजा शुं ? अर्थात् जे पूज्यनी पूजा करता नथी, ते पण पूजवाने योग्य नथी. ४५. बुद्धिमानोनी आगळ नम्रता अवश्य राखवी जोइए, कारणके नम्रताथीज आत्मा वशीभूत थाय छे. धनुषना नमवाथीज धनुर्धारियोना मनोरथ सिद्ध थाय छे. ४६. ते लोकपाले जीवंधर स्वामीना शररिने जोतांज तेमना ऐश्वर्यनो निर्णय करी दीधो. सत्य छे के चेष्टाना जाणनार लोकोनुं शरीरज तेमनुं दौरात्म्य (दुर्जनता) अने महात्म्य कही दे छे. ४७, त्यार पछी राजाए पोतानुं अर्धं राज्य अने कन्या जीवंधर स्वामीने आपी दाधां. सत्य छे के लक्ष्मी योग्य पुरुषनी पासे पोते जातेज चाली आवे छे.. ४८. अने पवित्र जीवंधर स्वामएि लोकपालनी मारफत आपेली तिलोत्तमानी पुत्री पद्मा के जे युवान हती, तेनी साथे लग्न कयु. ४९.
आ प्रमाणे श्रीमान् वादीभसिंहसूरिए रचेल श्री क्षत्रचूडामणि ग्रंथमा “पद्मालम्भ" नामे पांच, प्रकरण पूर्ण थयुं, .