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ठीकज छे के निर्मूळ वस्तु सहाय विना केवी रीते रही शके छ ? ३३ जे लोक गुरुद्रोही छे, ते समग्र जगतनो नाश करनार छे अने ते कदापि विश्वास करवा योग्य थई शकता नथी. जे माणस गुरुनी साथे द्रोह करवाथी डरतो नथी, तेने बीजानी साथे द्रोह करवामां जरा पण भय होतो नथी. ३४. त्यार पछी कृत्यने जाणनार आचार्य विधिपूर्वक कृत्य करनार शिष्यने गृहस्थीओना साचा धर्मनी शिक्षा आपी अर्थात् श्रावकाचारनी बधी वातो बतावी. ३५. पछी गुरुए तेने ए बताव्युं के तेनी उप्तत्ति राजाना वंशथी छे अर्थात् ते राजानो पुत्र छे. प्रसन्न थईने बधो वृतान्त तेने संभळाव्यो. ३६.
ज्यारे गुरुना वचनद्वारा सत्यंघरना पुत्रने ए विदित थयुं के, आ काष्ठांगार तेना बापने मारनार ले, त्यारे तो ते क्रोधमां आवीने काष्ठांगारने मारवा माटे कौवच पहेरीने तैयार थई गयो. ३७. पंडित महाशये तेने वारंवार निवारण पण कर्यु, पण ते शान्त न थयो. हाय ! ज्यारे क्रोधी माणस पोते पोतानोज नाश करी नांखे छे त्यारे तो बीजं शुं शुं करतो नथी? ३८.
गुरुए ज्यारे तेने ए कहीने निवारण कर्यु के- “हे पुत्र ! एक वर्षने माटे वधारे क्षमा कर. बस, एज मारी गुरु दक्षिणा छे ! " अर्थात् तारी पासे हुं गुरुदक्षिणामां फक्त एज इच्छं छं के एक वर्ष सुधी तुं काष्ठांगारने हजु पण छेडीश नहि, त्यारे तो ते शान्त थई गयो. कारणके कयो पुरुष एवो छे के जे गुरुना हुकमनुं उल्लंघन करे. ३९.