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प्रकरण ४ थु.
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र पछी जीवंधरस्वामी पोतानी स्री गंधर्वदत्ता साथे रमण करवा लाग्या-सुख भोगववा लाग्या, कारण के संसारमा मनुष्य पोताने योग्य वस्तुओनेज भोगववाथी सुख अनुभवे छे.१
मरा-HELHTRATHIRTANTANEER
हवे वसन्तऋतुए नगरवासीओने जळक्रीडा करवा लगाड्या अर्थात वसन्तऋतु आववाथी नगरना बधा माणसो फाग खेलवा लाग्या. जे लोक अनुरागथी आंधळा छे, तेमने वसन्तज भाई छे. जेमके अग्निनो बंधु पवन. २. जीवंधर कुमार पण पोताना मित्रोनी साथे नदीना जळनी आ नवी क्रीडा जोवाने गया, कारण के संसारना मनुष्य हमेशां नवी नवी वस्तुओने ईच्छे छे. ३.
त्यां केटलाक ब्राह्मणोए एक कुतरो, के जेना बोटवाथी घी दूषित थई गयुं हतुं, तेने मारी नांख्यो. कठोर हृदयवाळा अने धर्मना विरोधी लोक शुं शुं कार्य करता नथी अर्थात् ते सर्व कंई नीच कर्म पण करी नांखे छे. ४. हाय ! अधर्मी पुरुष जीवोने विना कारणज मारी नांखे छ अने जो तेने मारवामां जरा पण कहेवा सांभळवानुं कारण मळी जाय तथा कोई निवारण करनार न होय, तो तो पछी कहेज शुं ? ५.