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बतावे. विपत्काळमां तो यमना दूत पण दूर जता रहे छे; अर्थात् दुःखी प्राणीने काळ पण खातो नथी. ३२. एटलामां जीवंधर स्वामीए दांतोथी प्रहार करनार ते हाथीने जोईने हठाव्यो. सत्य छे के परार्थ साधनमा लागेला अर्थात् वीजार्नु हित करनार सज्जन पुरुष पोतानी विपत्तिने देखता नथी. ३३. बीजार्नु हित ईच्छनार सज्जन पुरुष कई कई स्थळे अवश्य विद्यमान छे. जो कई पण सुजनता के साधुभाव न होय तो, आ संसारज केम करीने चाले ? ३४.
त्यार पछी कुटुम्बना लोक पण पोतपोतानी मेळे एवं कहेता दोडता आव्या के, 'पहेलो हुं, पहेलो हुं.' सत्य छ, के सुखमा ते लोक पण बन्धु बने छे के जेमने पहेलां कदी दीठा होता नथी. ३५. तेज वखते एक बीजाने परस्पर जोईने कन्या अने कुमारमा प्रीति उत्पन्न थई गई. सत्य छे के, मनुष्योने दुःखनी पछी सुख अने सुखनी पछी दुःख होय छे. ३६. पछी ते कन्या जेनुं अंतःकरण कामपीडाथी अशान्त अने संतप्त थई गयुं हतुं, ते जेम तेम करीने पोताने घेर गइ. सत्य छे के जो विवेकरुपी जळनो प्रवाह न हाय, तो रागरुपी अग्नि केम करीने शन्ति थइ शके ? ३७. पछी घेर आवीने तेणे स्वामीनी पासे क्रीडाशुक अर्थात् पोतानो पाळेलो पोपट मोकल्यो. सत्य छे के जे माणस रागथी आंधळो थइ जाय छ, तेनामा योग्य अने अयोग्यनो