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प्रकरण ५ मुं.
वे जीवंधर कुमार गुणमालाने परणीने तेने अतिशय दुर्लभ्य समझ्या. तेओ तेथी बहु स्नेह करवा लाग्या. सत्य छे के जे वस्तु यत्नथी मळे छे, ते बहु व्हाली लागे छे. १.
स्वामी पहेलां गुणमालाने बचावी त्यारे ते गंधहस्तीने कडुं मा हतुं, तेथी ते हाथीए पीडाइने खावानुं खाधुं नहि. सत्य छे, के पशुओथी पण तिरस्कार सहन थतो नथी, अर्थात् पशु पण पोतानो तिरस्कार सहन करतां नथी. २. काष्ठांगार आ सांभळीने स्वामीपर बहु क्रोधायमान थयो, कारण के अग्निमांघी होमनाथी तेनी झाळ वधारे वधे छे. ३. अनंगमाला वारांगना के जेना उपर काष्ठांगार आशक्त हतो, तेनो संग करवाथी, गायोरुपी धनना ओरनार वाघने जीतवाथी अने वीणाविजयी होवाथी काष्ठांगारना हृदयमां क्रोधनी अभि स्थपाइ हती. ४. कोइनामां गुणोनी उत्कर्षतान जोइने नीच माणसोना मनमा पीडाज उत्पन्न थाय छे। अने जो गुणोने जोइने प्रीतिज उत्पन्न थाय, तो पछी नीचपणुंज क्यां रहे ? ५. नीच मनुष्योनी साथे उपकार करवो, ते अपकारनुं कारण पण थाय छे. जेमके सापने दूध पावाथी विषनीज वृद्धि थाय छे तेम. ६. पछी काष्ठांगारे सेना मोकली के, कुमारनो हाथ