Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 52
________________ ४३ आपनार मंत्रने लीधे देवतायोजिनुं मळवं कठण नथी. जे मंत्रथी मोक्षनी प्राप्ति थाय छे, तेथी देवगति मळवी ते तो बहुज सहेल छे. १३. त्यार पछी " हे भाग्यशाळी पुरुष ! मने याद करजो " एवं कहीने ते देव अन्तर्धान थयो. चेतनप्राणी पोतानो उपकार करनार माटे प्रत्युपकार करवानी इच्छा केम करे नहि ? अर्थात् कृतज्ञ प्राणी उपकारने बदले प्रत्युपकार अवश्य करेज छे. १४. ज्यारे ते देव जीवंधर कुमारनुं वारंवार आलंगन करीने अने कुशलक्षेम पुछीने चाल्यो गयो, त्यारे त्यां जे कई थयुं तेनुं वर्णन करवामां आवे छे. १५. सुरमंजरी अने गुणमालाने चूर्णने माटे परस्पर इर्ष्या थई, अर्थात् पहेली बजीने कहेवा लागी के जो, कोनुं पटवस्त्र वधारे सुगंधित छे? सत्य छे, के आ संसारमा एकजं पदार्थनी इच्छा करवाथी कोनी कोनी इर्ष्या वधती नथी ? अर्थात् सर्व एज इच्छे छे के, हुंज आ पदार्थने लई लडं अथवा मारीज वस्तु बीजानी वस्तुओंथी अधिक स्तुत्य छे. १६. पछी ते वन्ने सखीओए मांहोमांहे शरत करी के, आपण बन्नेमां जे कोई हारे, ते आ नदना जळमां स्नान करे नहि. सत्य छे के द्वेषभावथी शुं नाश थतो नथी ? अर्थात् पोतानुं सारुं काम पण नाश पामे छे. १७. पछी तेमणे बे दासीकन्याओने सज्जनोनी पासे मोकली. सत्य छे, के मत्सर अने द्वेष करनारने गमे ते खोडं काम होय, पण ते सारुं लागे छे. १८. तेथी ते बन्ने दासीओ चतुर अने बुद्धिमान जीवकनी

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