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सज्जनोना मुखी उत्पन्न थाय छे. ए रीते सज्जनोनां वचनामृत साक्षात् अमृतथी पण उत्कृष्ट छे. अने अन्य गुणमां समान छे कारण के जे रीते अमृतथी जागृति ( चैतन्यता) अने सौंमनस्यत्व (अमरपणुं ) प्राप्त थाय छे, तेज रीते वचनामृतथी पण जागृति अने सौमनस्यत्व अर्थात् सज्जनता प्राप्त थाय छे. ५१. यौवन (जुवानी) अथवा युवाअवस्था, बळ अने ऐश्वर्य अथवा प्रभुता ए हरेक विकारना करनार छे. अने ज्यां एत्रणे एकठां होय, त्यां तो पछी कहेवानुंज शुं छे ? तेथी तेना होवा छतां पण चित्तमां विकार थवो जोइए नहि. ५२. कारण के ते मळवाथी पण सज्जनोना चित्तमां विकार थतो नथी. जे देड़का गायनी खरीना जेटला पाणीमां हाली चाली शके छे, ते शुं समुद्रना जळने रोकी शके छे ? कदापि नहि. सज्जननुं चित्त समुद्रनी समान गंभीर तथा स्थिर होय छे. थोडां कारणोना मळवाथी ते कंटाळता नथी. ५३. देश काळ अने दुर्जन जो के कारण छे, परंतु एकलां ते शुं करी शके छे ? यथार्थमां चलायमान बुद्धि विकार उत्पन्न करनार छे. तेथी पोताना स्वभावमां स्थिर रहेवुं जोइए; कारण के चित्तनी स्थिरताज मुक्तिनुं कारण छे. ५४. पुण्य क्षीण थवाथी हजारो शखामणथी पण धर्मबुद्धि उपजती नथी; परंतु पात्रमां अर्थात् जेनी सत्तामा पुण्य विद्यमान छे, तेमां वगर उपदेशेज बुद्धि पोते स्फुरायमान थाय छे. तेथी सिद्ध थाय छे के, पोतेज पोताना