Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 36
________________ २७ कार्य करवं अने पोतानी बुद्धिने लोभ क्रोध मोहादिकनी वशमा राखवी नही. जेओ स्त्रीओ द्वारा संबंध जोडे छे, अने पोताना स्वार्थ मार्गे चालवाने उत्सुक रहे छे, ते साप समान दुष्ट दुर्जनोनी संगत छोडी देवी जोइए; सापनी अने दुर्जनोनी अहीं समानता बतावी छे. दुर्जननी समान साप पण स्त्रीमुखथी अर्थात् उल्टा मुखथी मार्ग करे छे, अने पोताना मार्गपर चालवाने तैयार रहे छे. सत्य छे, के दुष्ट पूरुष अने साप ए बन्नेज सर्वनो नाश करे छे. ४७. सापने छेडवाथी तो मनुष्योनो देहपातज थाय छे, परंतु दुष्टजनना संयोगथी कुलीनता, प्रभुताइ, पंडिताई, क्षान्ति, (क्षमा) अने यश आदि सर्व कंइ क्षणवारमा नाश पामे छे. ४८. दुष्ट पुरुष बधा लोकने दुष्ट बनावी दे छे, परंतु सज्जन तेमने सज्जन बनावी देता नथी; केमके पदार्थोनो नाश करवो तो सुगम छे, पण तेनुं उत्पादन करवू कठण छे. ४९. सारा पुरुषोए इच्छयूँ के, सर्वथी प्रथम यत्नपूर्वक सज्जनोनी वन्दना करवी. शुं अनायासथी प्राप्त करेलु रत्न आ संसारमा माटीनी माफक स्तुत्य होय छे ? अर्थात् रत्न जो परिश्रम वगर मळी जाय, तो पण ते स्तुत्य होय छे. ए रीते सज्जन पुरुष सदा पूज्य होय छे. ५० विशेषमां सज्जनोनां वचन अजमायशथी उत्पन्न थएल अमृत छे; अर्थात् अमृत जळाशयथी (जडरुप समुद्रथी) उपजे छे, अने वचनामृत अजळाशय अर्थात् सचेतन ( अजडाशय )

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