Book Title: Jivandhar Charitra
Author(s): Kshatrachudamani
Publisher: Mulchand Kisandas Kapadia

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Page 39
________________ ३० नोना हृदयमां, शरीरनी कान्तिथी स्त्रीओना हृदयमां, अने शस्त्रकळानी चतुराईथी रथमां शोभतो हतो, ते समयनी एक प्रासंगिक वात कहेवामां आवे छे; ६१. एक दिवस घणाज गोवाळीआ राजाना आंगणामां आवीने उभा रह्या अने ए रीते उच्च स्वरथी बोल्या के–“वाघे गायोने रोकी लीधी छे" ६२. काष्ठांगार पण ए अवाजनो शब्द सांभळीने बहु गुस्से थयो; कारण के जो नीच पुरुष मोटानो अनादर करे, तो ते सहन थतो नथी. ६३. अने तेणे गायोने छोडाववाने एक सेना मोकली, परंतु ते पण हारी गई. कारण के पोताना स्थानमां ससखें हाथीथी पण विशेष बळवान होय छे. (कुतरो पण पोताना फळीआमां मीर थाय छे.) ६४. .. त्यारपछी वाघनी सेना जीती गई, ए सांभळीने भरवाडनां गामोमां पण खळभळाट थयो; अर्थात् शत्रुओथी लडवाने भरवाड पण उत्तेजीत थइ गया. कारणके आजीविकानो नाश थवाथी लोक कोइथी पण डरतो नथी. ६५. ___ हवे ते वखते ते वाघने जीतवाने माटे एक नन्दगोप नामनो पुरुष विचार करवा लाग्यो; कारण के जे लोकोने कोइ प्रकारनी पीडा थाय छे, ते एज चिंता करे छे के, शं करवू जोइए, अने तेथी शुं फळ थशे? ६६. मनुष्योने धन कमावानी अपेक्षाए तेनी रक्षा करवामां, अने रक्षानी अपेक्षाए तेनो क्षय थइ जवामां उत्तरोत्तर अनन्तगणी पीडा थाय छे. ६७. तो

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