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प्रकरण त्रीजुं.
वे पद्मास्य तो गोविन्दाने परणीने रमण करवा लाग्यो अने राजकुमार शूरवीरतारुपी लक्ष्मीने
प्राप्त करीने क्रीडा करवा लाग्यो. आ विषयमां Food अहिं एक प्रासंगिक वातनुं वर्णन करवामां
3 आवे छे:-१. ते नगरनो अर्थात् राजपुरीनो रहेनार श्रीदत्त नामे एक वैश्य हतो. तणे धन प्राप्त करवानी इच्छा करी, कारण के कयो एवो पुरुष छे के जेने धननी आशा न होय ? अर्थात् धननी आशा सर्वने होय छे. २. पछी तेणे धनोपार्जन- कारण अने तेनुं फळ विचार्यु, कारण के संसारना उपाय विचारवामां मनुष्योने कोई रोकतुं नथी. ३. “ बापदादानुं धन गमे तो विशेष होय, तो तेथी शुं ? कारण के उद्योगी पुरुषने बीजाना अन्नपर गुजरान चलायवू ठीक लागतुं नथी. ४. धन गमे तो बहुज होय, पण ज्यारे आवक होती नथी अने ते धनमांथी खर्चज थयो जाय छे, त्यारे ते बधुं धन खरचाई जाय छे. कारण के निरन्तर भोगमा लाववाथी तो पर्वत पण नाश पामे छे. ५. मनुष्योने दरिद्रताथी वधारे दुःखकारक अने पीडाजनक बीजी कोई वस्तु नथी, कारण के दरिद्रताथी प्राणी प्राण त्याग कर्या विनाज मरी जाय छे अर्थात् जीवताज मरेला छे.६.