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तो तेमनुं मरवू सारं छे (पराधीन स्वप्नमां सुख नथी) अथवा वनमां मृगेंद्र के सिंहने प्रभुताई कोणे आपी छे ? अर्थात् प्रत्येक मनुष्य पोतानाज पुरुषार्थ अने बाहुबळथी स्वतंत्र थई शके छे" ४०, पछी तेणे मंत्रिओने कयु के-" राज्यद्रोह करनार दैवत नित्य एम कहे छे के, तमे राजद्रोह करो अर्थात् राजानी साथे वेर करो-तेने मारी नांखो. ४१. परंतु तेनो अंत सारो छ के खोटो अने तेनुं परिणाम शुं थशे, ते वातोने तमे विचारो. आ वार्ता हजु सुधी तर्क वितर्क करीने विचारवामां
आवी नथी अने ज्यारे ते तर्कपर चढशे अर्थात् सारी रीते विचारवामां आवशे त्यारे स्थिर के पाकी थई जशे. ४२. हुं देवना डरथी आ वचन कहेतां पण लजाउं छु अर्थात् मने आ वात कहेतां लाज आवे छे." सत्य छे के, पापीओना मनमां कंई होय छे, वाणीमां कंई अने कार्यमां कई होय छे; अर्थात् पापी अने दुष्ट लोक विचारे छे कई, कहे छे कई अने करे छे कंई. ४३. काष्टांगारनी आ वात सांभळीने कुलीन पुरुष तो निन्दाथी डर्या, संयमी प्राणी हिंसाथी डर्या अने क्षुद्र के हलका पुरुष दुर्भिक्ष के अकाळथी डा. ए रीते बधा सज्जन पुरुषो भयभीत थई गया. ४४. ते वखते धर्मदत्त नामे मंत्रि पोतानोज नाश करवावाळां वचन बोल्यो. कारण के स्वामाना विषयमा जे भक्ति होय छे, ते बहु भारे होय छे अने ते भक्तिथी पोताना प्राणनी पण कई परवा करतो नथी. ४५. धर्मदत्ते कह्यु-"राजाज प्राणीओना प्राण होय छे तेना जीववाथीज प्राणी मात्रनुं जीवन निर्भर छे,