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छे ? ६३. ए यंत्रने आकाश मार्गे उपर जवा पछी राजाए मोहवश थईने लडवानुं शरु कर्यु, परंतु सहाय विनानी आंगळी पोते जातेज शब्द करी शकती नथी; अर्थात् ज्यारे राजानी पासे सेना विगैरेनी सहायता रही नहीं अने स्त्री पुत्र पण न रह्यो, त्यारे ते एकलो शुं करी शके एम हतो ? ६४. पछी बहु वखत सुधी युद्ध करीने राजाए विचार्यु के, फोकटमां पाणीओनी हिंसा करवाथी शो लाभ थशे ? अने ते विचारथी तेने वैराग्य थई गयो; कारण के मन गतिने आधिन होय छे, अर्थात् जेवी गति थनार छे तेवाज सारा के नठारा विचार सूजे छे.६५.हे आत्मन् ! ते पोते पोताने आ विषयाशक्तिना दोषमा प्रवृत कर्यो हतो, तेथी हवे तुंज आ विषरुपी अथवा हळाहळ झेर समान विषय भोगादिकमां इच्छा करवी छोडी दे. ६६. हे आत्मन् ! तें आ सर्व (राजपाट वगेरे) ने पहेलां भोगव्यां छे अने हवे तुं एने फरी भोगवाने इच्छे छे. तथा आ तारुं पहेला भोगवेलुं राज्य उच्छिष्ट छे अने तेथी तुं आ उच्छिष्ट (एंटुं) राज्यने छोडी दे; कारणके देहधारी प्राणीओना अनन्त जन्म थाय छे. ६७. जो विषयभोगादिक चिरस्थायी होवा छतां पण अवश्य नाश पामे छ, तो तुं पोतेज तेने छोडी दे; कारणके मुक्ति एमांज छे, नहि तो अनेक जन्ममां पडीने दुःख भोगवq पडशे. ६८. जे पुरुष राज्यमा रक्तचित्त रहे छे तेने ते राज्य छोडी दे छे अने जे राज्यने छोडी दे छे ते राज्य तेनी स्वयं सेवा करवा इच्छे छे,