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रामा पोतानी निन्दानो पण कई विचार को नहि; कारणके स्वार्थी लोक दोपने किंचित मात्र पण देखता नथी. ५२. .. काष्ठांगारनो एक मथन नामनो साळो हतो. तेने तेनी .(काष्ठांगारनी) वात बहु सारी लागी, अर्थात् राजद्रोह करवानी वातनी तेणे बहु प्रशंसा करी; अने तेनुं आ सारु मानकुंज शत्रुता करनारना हाथमां हथीयार आववा समान थयु. ५३, खेद छे के ए पछी ते दुष्ट बुद्धिवाळाए राजाने मारवाने माटे सेना मोकली. कारण के मोमां गएला दूधने क्यां तो पी शके छे के ओकी शके छ; अर्थात् काष्ठांगारे ज्यारे राजद्रोहनी वात बहार काढी, त्यारे क्यां तो ते तेने दबावी देतो, पेटमा राखतो, के बहार काढीने घात करवाने माटे तैयार थतो. त्रीजो कोई मार्ग नहोतो. ५४
राजा, दरवानना मुखथी आ वात सांभळीने क्रोधनो मार्यो युद्ध माटे उठीने उभो थयो. कारण के युद्धमां राजसीभाव स्थीर रहेतो नथी अर्थात् प्रगट थया वगर रहेतो नथी. ५५. परंतु ते वखते राजा पोतानी गर्भवती प्यारी स्त्रीने अर्धासनथी पडेली अने मरणतुल्य जोईने पाछो उल्टो विचार करवा लाग्यो; कारणके स्त्रीओ माटे निरादर के अपमान सहन थतुं नथी.५६.पृथ्वीपति राजा पोते जागृत थईने पोतानी स्त्रीने जागृत करवा लाग्यो; कारण के पीडा थतां अर्थात् विपत्ति काळमां पंडितोनुं साचं झान जागृत थाय छे. ५७. बस, हवे शोक करवो जोईए