Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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पृष्ठों में प्रकाशित है । यह ग्रन्थ महाकवि आचार्य ज्ञानसागर जी महाराज ने क्षुल्लक अवस्था में लिखा था, उस समय आपका नाम क्षु. ज्ञान भूषण था ।
26. देवागम स्तोत्र आचार्य समन्तभद्र द्वारा रचित यह देवागमस्तोत्र में जिसे इतिहासवेत्ताओं द्वारा गन्धहस्ती महाकाव्य का मंगलाचरण कहा जाता है, समन्तभद्र स्वामी ने भगवान की भी परीक्षा करके उनके गुणों की महिमा का गुणानुवाद किया है । इस देवागम् स्तोत्र का ब्रह्मचारी पं. भूरामल शास्त्री ने पद्यानुवाद किया था । दुर्भाग्य से यह ना तो अभी तक कहीं प्रकाशित हुआ है और ना ही इसकी मूल पाण्डुलिपि अभी तक उपलब्ध हो पाई है, अन्य साक्ष्यों से पद्यानुवादों की सूचना मिलती है ।
27. नियमसार आचार्य कुन्द-कुन्द द्वारा रचित समयसार प्रवचन-सार, पंचास्तिकाय ग्रन्थों की कठिन गुत्थियों को सुलझाने वाला कुन्द-कुन्द स्वामी द्वारा ही रचित यह नियमसार ग्रन्थ है । इसका पद्यानुवाद भी ब्रह्मचारी पं. भूरामल शास्त्री (आचार्य ज्ञानसागर जी) द्वारा पद्यानुवाद किया गया । यह भी दुर्भाग्य से अभी तक अप्राप्त है ।
28. अष्ट पाहुड़ आचार्य कुन्द-कुन्द द्वारा रचित सम्यक् सन्मार्ग की उद्घोषणा करने वाला यह ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ पर भी ब्रह्मचारी पं. भूरामल शास्त्री (आचार्य ज्ञानसागर जी) द्वारा पद्यानुवाद किया गया । यह भी दुर्भाग्य से अभी तक अप्राप्त है ।
___ 29. शान्तिनाथ पूजन विधान पूर्व आचार्यों द्वारा रचित विधान का पं. भूरामल शास्त्री (आचार्य ज्ञानसागर जी) ने सम्पादन किया है । जैन दर्शनानुसार प्रत्येक अच्छे कार्य एवम् विघ्न निवारण हेतु शान्ति विधान करने की परम्परा है महाकवि द्वारा सम्पादित इस विधान में अनेक मिथ्या कुदेवों की आराधना का कोई स्थान नहीं दिया है । प्रतिष्यचार्य एवं शांति विधान करने वालों के लिए इस पुस्तक से शान्ति विधान करना चाहिए। यह पुस्तक शास्त्राकार रूप में प्रकाशित है ।
उपरोक्त 29 ग्रन्थ आचार्य ज्ञानसागर जी की साहित्य साधना है । इस साहित्य साधना को देखकर तथा समकालीन लोगों से जो जनश्रुति सुनने में आती हैं कि महाकवि ने इन 29 ग्रन्थों के अलावा और भी ग्रंथ लिखे हैं, जो यत्र तत्र मन्दिरों