Book Title: Jayoday Mahakavya Ka Shaili Vaigyanik Anushilan
Author(s): Aradhana Jain
Publisher: Gyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
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जयोदय महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन - प्रथम अध्याय - जयोदय महाकाव्य का कवि, उसका जन्मस्थान, समय, कृतित्व एवं व्यक्तित्व। द्वितीय अ : - जयोदय महाकाव्य की कथावस्तु, कयाविभाग, स्रोत. एवं ऐतिहासिकता । तृतीय अम्बाप - संस्कृत साहित्य में महाकाव्यों की परम्परा, जयोदय का महाकाव्यत्व, महाकाव्यों
की परम्परा में जयोदय का स्थान तथा जयोदय एवं पूर्ववर्ती महाकाव्य । - चतुर्व अध्याय - जयोदय महाकाव्य में रस एवं भाव-विमर्श । पंचम अध्याय - जयोदय महाकाव्य में अलङ्कार-निवेश । पर अन्याव - जयोदय महाकाव्य में गुण, रीति एवं ध्वनि-विवेचन । सतन अन्याय - जयोदय महाकाव्य में छन्दोयोजना । नवम अध्याय - उपसंहार परिशिर: १. जयोदय महाकाव्य में प्रस्तुत स्थान, पात्र, दार्शनिक-शब्दसमूह एवं ललित
सूक्तियाँ।
२. सहायक ग्रन्थों की सूची।
इस रूपरेखा से स्पष्ट हो जाता है कि डॉ. पाण्डेय का जयोदय विषयक अध्ययन परम्परागत काव्यशास्त्रीय चौखट के भीतर ही है । इसमें आधुनिक शैलीवैज्ञानिक दृष्टि से काव्यभाषा का विश्लेषण शोध का बिन्दु नहीं है। ध्वनि, गुण, रीति के अतिरिक्त भाषा को काव्यात्मक बनानेवाले अनेक तत्त्व है; जैसे प्रतीक, बिम्ब, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, सूक्तियाँ आदि । इनका विश्लेषण उपर्युक्त शोध रूपरेखा में स्थान नहीं पा सका है। अतः डॉ० पाण्डेय के शोध क्षेत्र की सीमा के बाहर शोध का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र जयोदय में विद्यमान दिखाई दिया । वह था शैलीवैज्ञानिक या काव्य-भाषीय विश्लेषण का क्षेत्र । जिसमें यह अध्ययन किया जाता है कि कवि ने भाषा को काव्यात्मक बनाने के लिए अभिव्यक्ति के किन-किन का प्रकारों का अर्थात् लाक्षणिक एवं व्यंजक वचनभंगियों का प्रयोग किया है ? उनका अभिव्यंजनात्मक वैशिष्ट्य क्या है ? यह काव्यसमीक्षा का आधुनिक भाषा शास्त्रीय पक्ष है। भारतीय समीक्षाशास्त्र में आचार्य कुन्तक ने अपने समीक्षा ग्रन्थ वक्रोक्तिजीवित के द्वारा इसका बहुत पहले ही निर्देश कर दिया था । उन्होंने विभिन्न वक्रताओं के रूप में चयन और विचलन पर आधारित अभिव्यक्ति के अनेक प्रकारों का प्रकाशन किया है, तथापि संस्कृत में समीक्षा की पद्धति अभी तक ध्वनिकार आनन्दवर्धन एवं काव्यप्रकाशकार मम्मट द्वारा प्रणीत सिद्धान्तों की परिधि में ही चली आ रही है । पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के प्रभाव से अभिव्यक्त के अनेक नये प्रकारों की भी पहचान हुई है; जैसे प्रतीक, बिम्ब, मुहावरे, लोकोक्तियों, सूक्तियाँ आदि। इन सबका अध्ययन शैलीवैज्ञानिक अध्ययन के अन्तर्गत होता है।